*भगवान शिव की पूजा भोग एवं मोक्ष दोनों प्रदान करती हैं ! कलियुग में पार्थिव शिवलिंग के पूजन का बहुत बड़ा महत्व है ! पार्थिव का निर्माण करने की विधि शिव महापुराण में विधिवत बताई गई है ! सर्वप्रथम "ॐ नमः शिवाय" का उच्चारण करते हुए पूजन सामग्री पर जल का प्रोक्षण करना चाहिए उसके बाद "आपो अस्मान्०" मंत्र से जल का संस्कार करें फिर "नमस्ते रुद्र मन्यव०" बोलते हुए स्फटिकाबंध बनाने का प्रयास करें ! "नम शम्भवाय०" कहते हुए क्षेत्रशुद्धि और पंचामृत का प्रोक्षण , तत्पश्चात "नमोस्तु नीलग्रीवाय०" इस मंत्र से शिवलिंग की उत्तम प्रतिष्ठा करते हुए रुद्राष्टाध्यायी के पंचम अध्याय अर्थात रुद्रसूक्त से वैदिक विधान के अंतर्गत भगवान शिव का विधिवत षोडशोपचार पूजन करें ! पूजन के बाद श्रद्धा सहित भगवान की आरती करें और भगवान रुद्रदेव को पुष्पांजलि अर्पित करके साष्टांग प्रणाम करें ! प्रणाम करने के बाद शिवमुद्रा , अभयमुद्रा , ज्ञानमुद्रा महामुद्रा एवं धेनुमुद्रा आदि पांच मुद्राओं का प्रदर्शन भगवान शिव के समक्ष करके पंचाक्षर मंत्र का जप या वेदज्ञ पुरुष "शतरुद्रिय" मंत्र की आवृत्ति करें ! भगवान शिव का विसर्जन करते हुए अपने परिवार के कल्याण की कामना कपे ! उपरोक्त वैदिक विधान से भगवान शिव का पूजन करना साधारण व्यक्ति के लिए सरल कदापि नहीं है परंतु ऐसा नहीं है कि साधारण व्यक्ति भगवान के पार्थिव लिंग का पूजन ही नहीं कर सकता ! हमारे शास्त्रों ने किसी भी विधान को वैदिक विधि से करना बताया है तो वही सरल से सरलतम विधि भी बताई है ! जो भी मनुष्य उपरोक्त बताई गई विधि से भगवान शिव का पूजन न कर पाए उसके लिए सरल विधि का वर्णन भी कहा गया है !*
*आज भक्तजन श्रावणमास में पार्थिव पूजन भक्तिभाव के साथ कर रहे हैं ! उपरोक्त वैदिक विधान साधारण मनुष्य नहीं कर सकता तो उसके लिए सरल विधि यह बताई गयी है कि "सद्योजातम्०" इस मन्त्र से पार्थिवलिंग बनाने के लिए मिट्टी लाये , "वामदेवाय०" मन्त्र से उसमें जल डाले , मिट्टी तैयार हो जाने के बाद "अघोर०" मन्त्र से शिवलिंग का निर्माण करे फिर "तत्पुरुषाय०" मन्त्र से विधिवत आवाहन करे ! तदन्तर "ईशान०" मन्त्र से भगवान शिव को वेदी पर स्थापित करे ! इसके सिवाय अन्य सब विधानों को भी शुद्ध बुद्धि वाला उपासक संक्षेप से ही संपन्न करें ! इसके बाद विद्वान पुरुष पंचाक्षर मंत्र से अथवा गुरु के द्वारा दिए हुए अन्य किसी शिव संबंधी मंत्र से सोलह उपचारों द्वारा विधिवत पूजन करें या फिर "भवाय भवनाशनाय महादेवाय धीमहि ! उग्राय उग्रनाशाय शर्वाय शशिमौलिने !!" इस मंत्र के द्वारा भगवान शंकर की पूजा करें ! मस्तिष्क में कोई भ्रम न रखें भक्ति से भगवान की पूजा करें क्योंकि अटूट श्रद्धा एवं निश्चल भक्ति से ही फल मिलता है ! मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" यह बताना चाहता हूं कि यदि इस विधि से भी मनुष्य भगवान शिव का पूजन ना कर पावे तो सर्वसाधारण के लिए अति सरल विधि भी सनातन धर्म में है ! जैसा कि सभी जानते हैं कि भगवान शिव के हर , महेश्वर , शम्भु , शूलपाणि , पिनाकधृक , शिव , पशुपति और महादेव यह आठ नाम कह गए हैं ! इनमें से सर्वप्रथम प्रथम नाम के द्वारा अर्थात "ॐ हराय नम:" बोलकर पार्थिव लिंग बनाने के लिए मिट्टी लावे , फिर "ॐ माहेश्वराय नमः" का उच्चारण करके लिंग निर्माण करें तत्पश्चात "ॐ शम्भवे नमः" बोलकर पार्थिव लिंग की प्रतिष्ठा करें ! उसके बाद "ॐ शूलपाणये नमः" कहकर उसे पार्थिव लिंग में भगवान शिव का आवाहन करें ! "ॐ पिनाक धृषे नमः" कहकर शिवलिंग को स्नान कराये ! "ॐ शिवाय नमः" बोलकर उनकी पूजा करें ! सारी सामग्री चढ़ाने के बाद "ॐ पशुपतये नमः" कहकर क्षमा प्रार्थना करें और अंत में ॐ महादेवाय नमः कहकर रुद्रदेव का विसर्जन कर दे ! इस प्रकार प्रत्येक नाम से आदि में ॐ कार और अंत में चतुर्थी विभक्ति के साथ नमः पद लगाकर बड़े आनंद और भक्ति - भाव से सारे कार्य करने चाहिए !*
*तीन प्रकार की विधियां यहां पर पार्थिव लिंग के निर्माण एवं पूजन करने की बताई गई है ! इन तीन विधियों मैं जिसको जो भी सरल लगे उससे भगवान शिव के पार्थिवलिंग का निर्माण करके पूजन कर लेना चाहिए ! वैदिक विधान एवं मन्त्र जिनका संकेत ऊपर दिया गया है वे सब रुद्राष्टाध्यायी में सबको प्राप्त हो जाएगा !*