*सनातन धर्म में प्राकृतिक शिवलिंग पूजा का विशेष महत्व है ! विशेषकर स्वयंभू (स्वयंसिद्ध) शिवलिंग पूजा से गहरी धार्मिक आस्था जुड़ी है ! ऐसे ही प्राकृतिक और स्वयंभू शिवलिंगों में प्रसिद्ध है- बाणलिंग अर्थात नर्मदेश्वर शिवलिंग ! पवित्र नर्मदा नदी के किनारे पाया जाने वाला एक विशेष गुणों वाला पाषाण ही बाणलिंग कहलाता है ! बाणलिंग शिव का ही एक रूप माना जाता है ! इसकी विशेषता यह है कि यह प्राकृतिक रूप से ही बनता है , इसलिए यह स्वयंसिद्ध शिवलिंग माना जाता है ! इन स्वयमभू शिवलिंगों के दर्शनमात्र को ही भाग्य संवारने वाला बताया गया है ! नर्मदा नदी में पाए जाने से बाणलिंग को नर्मदेश्वर लिंग भी कहकर पुकारा जाता है ! सनातन धर्म के विभिन्न शास्त्रों तथा धर्मग्रंथों के अनुसार मां नर्मदा को यह वरदान प्राप्त था कि नर्मदा का हर बड़ा या छोटा पाषण (पत्थर) बिना प्राण प्रतिष्ठा किये ही शिवलिंग के रूप में सर्वत्र पूजित होगा ! अतः नर्मदा के प्रत्येक पत्थर को नर्मदेश्वर महादेव के रूप में घर में लाकर बिना प्रतिष्ठा किये ही पूजा अभिषेक किया जा सकता है ! नर्मदेश्वर शिवलिंग की पूजा से सुख-समृद्धि के साथ-साथ बड़ी से बड़े से बडे संकटों से भी सुरक्षा मिलती है ! नदी में बहते हुए शिलाखण्ड शिवलिंग का रूप धारण कर लेते हैं जो कि भगवान शिव का चमत्कार है , इन शिवलिंगों का स्वरूप बहुत ही सुंदर व चमकीला होता है यह शिवलिंग अधिक प्रभाव शाली होने के कारण मूल्यवान भी होते हैं ! नर्मदा देश की ऐसी नदी है जो पूर्व से पश्चिम की ओर उलटी दिशा में बहती है , यह विशालकाय पर्वतों को चीरते हुए बहती है ! देश की अन्य नदियों में मिलने वाले पत्थर पिंड के रूप में नहीं मिलते हैं ! इससे यह प्रमाणित होता है कि केवल नर्मदा नदी पर ही शिव कृपा है ! किसी भी अन्य पत्थर की अपेक्षा नर्मदेश्वर शिवलिंग में कहीं अधिक ऊर्जा समाहित है ! इससे शिवलिंग में सृजन और नाश दोनों की शक्ति है ! यह सर्वविदित है कि जो फल गंगा नदी में स्नान से मिलता है, वही फल मात्र नर्मदा नदी के दर्शन से प्राप्त होता है ! नर्मदा से निकला हर कंकड़ भगवान शिव का प्रतीक माना जाता है और बाणलिंग के रूप पूजा जाता है !*
*आज पवित्र श्रावणमास उत्तरोत्तर अपनी पूर्णता की ओर अग्रसर है ! ऐसे में नित्य शिवचर्चा के क्रम में आज बाणलिंग के महत्व को बताना आवश्यक है ! बाणलिंग (नर्मदेश्वर) के पूजन का महत्व बताते हुए मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" कहना चाहता हूँ कि सहस्त्रों धातुलिंगों के पूजन का जो फल होता है उससे सौ गुना अधिक मिट्टी के लिंग के पूजन से होता है ! हजारों मिट्टी के लिंगों के पूजन का जो फल होता है उससे सौ गुना अधिक फल बाणलिंग (नर्मदेश्वर) के पूजन से होता है ! अत: गृहस्थों को परिवार के कल्याण के लिए, लक्ष्मी व ज्ञान की प्राप्ति व रोगों के नाश के लिए नर्मदेश्वर शिवलिंग की प्रतिदिन पूजा करनी चाहिए ! घर में अंगूठे की लम्बाई के बराबर का शिवलिंग स्थापित करना सर्वश्रेष्ठ माना जाता है ! शिवलिंग सुन्दर वर्तुलाकार (गोलाकार) होना चाहिए! नर्मदेश्वर शिवलिंग को वेदी (जलहरी) पर स्थापित कर पूजा करते हैं ! वेदी तांबा, स्फटिक, सोना, चांदी, पत्थर या रुपये की बनाते हैं ! बाणलिंग में निर्गुण, निराकार ब्रह्म भगवान शिव स्वयं प्रतिष्ठित हैं ! नर्मदेश्वर लिंग शालिग्राम शिला की भाँति ही स्व प्रतिष्ठित माने जाते हैं, इनमें प्राण-प्रतिष्ठा की आवश्यकता नहीं रहती है ! बाणलिंग का पूजन विशेष फलदायी है ! प्रत्येक मनुष्य को अपने घर में बाणलिंग की स्थापना करके नित्य भक्तिभाव के साथ पूजन करना चाहिए ! भगवान शिव को भोला भी कहा जाता है ! श्रद्धा भक्ति के साथ इनका पूजन करके कुछ भी प्राप्त किया जा सकता है ! जहाँ अन्य शिवलिंगों का निर्माण करना पडता है वहीं नर्मेश्वर बाणलिंग स्वयं निर्मित हैं ! अन्य शिवलिंगों का निर्माण करके उनका न्यास करके प्रतिष्ठा करनी पडती है जबकि नर्मदेश्वर बाणलिंग स्वप्रतिष्ठित हैं इनकी प्रतिष्ठा की कोई आवश्यकता ही नहीं है ! किसी भी देवता की पूजा करके फल प्राप्त करने के लिए यह आवश्यक है कि जिस देवता की उपासना करनी हो उस देवता के स्वरूप में स्थित हो जाना चाहिए अर्थात पूर्ण समर्पण होना चाहिए तभी किसी भी पूजा या साधना का फल प्राप्त किया जा सकता है !*
*नर्मदेश्वर बाणलिंग का पूजन अन्य शिवलिंगों की अपेक्षा अधिक फलदायी कहा गया है क्योंकि यह स्वयंभू सिद्धलिंग हैं ! अन्य शिवलिंगों की भाँति इनके प्रतिष्ठा आदि विधानों को नहीं करना पड़ता है !*