*भगवान शिव को विभूति अर्थात भस्म बहुत प्रिय है ! विभूति तीन प्रकार की बताई गई है लोकाग्निजनित , वेदाग्निजनित और शिवाग्निजनित ! लोकाग्निजनित या लौकिक भस्म को द्रव्यों की शुद्धि के लिए रखना चाहिए ! मिट्टी , लकड़ी और लोहे के पात्रों की , धान्यों की , तिल आदि द्रव्यों की , वस्त्र आदि की तथा पर्युषित वस्तुओं की शुद्धि भस्म से होती है ! कुत्ते आदि से दूषित हुए पात्रों की भी शुद्ध भस्म से ही मानी गई है ! वस्तु विशेष की शुद्धि के लिए यथायोग्य सजल अथवा निर्जल भस्म का उपयोग करना चाहिए ! वेदाग्निजनित जो भस्म है उसको उन-उन वैदिक कर्मों के अंत में धारण करना चाहिए ! मंत्र और क्रिया से जनित जो होमकर्म है वह अग्नि में भस्म का रूप धारण करता है ! उस भस्म को धारण करने से वह कर्म आत्मा में आरोपित हो जाता है ! अघोर मूर्तिधारी शिव का जो अपना मंत्र है उसे पढ़कर बेल की लकड़ी को जलाए ! उसे मंत्र से अभिमंत्रित अग्नि को शिवाग्नि कहा गया है ; उसके द्वारा जले हुए काष्ठ का जो भस्म है वह शिवाग्निजनित है ! कपिला गाय के गोबर अथवा गायमात्र के गोबर को तथा शमी , पीपल , पलाश , बट , अमलतास और बिल्व - इनकी लड़कियों को शिवाग्नि से जलाएं ! वह शुद्ध भस्म शिवाग्निजनित माना गया है तथा कुश की अग्नि में शिवमंत्र के उच्चारण पूर्वक काष्ठ को जलाकर उस भस्म को कपड़े से अच्छी तरह छानकर नए घड़े में रखकर समय-समय पर अपनी कांति या शोभा की वृद्धि के लिए धारण करने वाला मनुष्य सम्मानित एवं पूजित होता है ! भगवान शिव ने अपने शरीर में भस्म को धारण किया है क्योंकि भस्म इस संसार का सार है !*
*आज पवित्र श्रावणमास में भगवान शिव की पूजा घर-घर में हो रही है , भक्तजन भगवान शिव के स्वरूप की आराधना करते हैं ! भगवान शिव ने अपने पूरे शरीर पर भस्म धारण किया है ! भस्म के अर्थ को स्पष्ट करते हुए मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" बताना चाहता हूं कि जैसे मनुष्य सस्य आदि को जलाकर (पकाकर) उसका सार ग्रहण करता है , जैसे राजा अपने राज्य में सारभूत कर को ग्रहण करता है तथा जैसे जठरानल नाना प्रकार के भक्ष्य , भोज्य आदि पदार्थों को भारी मात्रा में ग्रहण करके उसे जलाकर सार्थक वस्तु ग्रहण करता है और उसे सारतर वस्तु से स्वदेह का पोषण करता है , उसी प्रकार प्रपंचकर्ता परमेश्वर शिव ने भी अपने आधेय रूप से विद्यमान प्रपंच को जलाकर भस्म रूप से उसके सारतत्व को ग्रहण किया है ! प्रपंच को दग्ध करके शिव ने उसके भस्म को अपने शरीर में लगाया है ! उन्होंने विभूति अर्थात भस्म पोतने के बहाने जगत के सार को ही ग्रहण कर लिया है ! भगवान शिव ने अपने शरीर में अपने लिए रत्न स्वरूप भस्म को किस प्रकार स्थापित किया है ! जैसे :- आकाश के सारतत्व से केश , वायु के सारतत्व से मुख , अग्नि के सारतत्व से हृदय , जल के सारतत्व से कटिभाग और पृथ्वी के सारतत्व से घुटने को धारण किया है ! इसी तरह उनके सारे अंग विभिन्न वस्तुओं के साररूप है ! कहने का तात्पर्य यह है कि समस्त सृष्टि का सार भस्म ही है ! इस प्रकार भगवान शिव समस्त सृष्टि के सार तत्व को ग्रहण करते हैं !*
*भगवान शिव की पूजा , भगवान शिव के आयुध एवं भगवान शिव के क्रियाकलाप को यदि सूक्ष्मता से देखा जाय तो प्रत्येक में रहस्य ही दिखाई पड़ता है और इतने रहस्यों को जानने तथा समझने के लिए हमको अपने पौराणिक ग्रन्थों का अध्ययन अवश्य करना चाहिए !*