क्या वो दिन थे बचपन के
मां की गोद और पापा के कंधे ,
न समाज की चिंता न दुनिया का डर ,
क्या वो दिन थे बचपन के........
मां की मनुहार और पापा का प्यार,
जिद्द पूरी होने का इन्तजार ,
क्या वो दिन थे बचपन के.......…
गलतियों पर डांटना मां का
समझाना पापा का। लेकिन
फिर वही बेफिक्र हर बार , याद आ रहा है आज वो सब क्या वो दिन थे बचपन के .... ््
डांटना, रूठना और मान जाना एक दूजे की बात
लेकिन
अब दूर इतने सब हो गये
क्यों कि हम सब बड़े अब हो गये ,
समझ अपनी विचार अपने
रिश्ते अब दूर हो गये है,
"हम"से " मैं"सब हो गये है,
अंहकार मे चूर सब हो गये है,
क्यों कि हम सब बड़े अब हो गये है।
क्यों कि हम सब बड़े अब हो गये है।
क्या वो दिन थे बचपन के.............