जो सोचते हैं वो भूल कर भी नहीं होता, जो नहीं सोचते हैं वो अक्सर हो जाता है। सोचते हैं हम----सूरज की रोशनी कभी मद्धम नहीं हो सकती। चांद की चांदनी कभी खत्म नहीं हो सकती। सितारों कीे संख्या कभी कम नहीं हो सकती। शरीर से परछाई अलग नहीं हो सकती। लेकिन....... वक्त बेवक्त कभीयह भी हो ही जाता है, बादलों के आ जाने से सूरज की रोशनी कम हो ही जाती है। अमावस की काली रातों में चांद की चांदनी भी गुम जाती हैं। चांदनी रातों में सितारों की कमी सी लगती है। और... ओर घने अंधेरों में साया भी साथ छोड़ ही देता है।।