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ऐसा मन करता है मेराकोयल बन उड़ जाऊं मैंमीठे -मीठे गीत सभी को, गाकर सदा सुनाऊं मैं ऐसा मन करता है म
क्या वो दिन थे बचपन केमां की गोद और पापा के कंधे ,न समाज की चिंता न दुनिया का डर ,क्या वो दिन थे बचपन के........ मां की मनुहार और पापा का प्यार, &
सोच रही हूं लिख दूं वो सब जोदिल में उमड़ - घुमड़ रहा है, बांध दूं शब्दों के दायरे में वो सब
यूं ही अचानक मिल गया वो शख्स, चलती ट्रेन में..….जिसे मैं मुद्द्तो से बड़ी शिद्दत के साथ खामोशी से चाहती रही,न उसने कुछ कहा न मैंने कुछ सुना, लेकिनमेरे खामोश होंठ और उसकी आंखों की न
काश कि मैं एक रोबोट होती,ना आज की चिन्ता न कल की फ़िक्र होतीकाश कि मैं एक रोबोट होतीना अहसास होतै ना feeling होतीफिर भी सबकी चाहत अपार होतीजरुरते जब सब की पूरी होती तो मुझ पर भी प्यार की ब
हर दिन सोचती हूं, आज जरुर लिखूंगी, वो जो मेरे मन में उठा है।बस इतना सा काम समेट लूं फिर हाथ में लूंगी -"मेरी डायरी और पेन " लेकिन इतने में फिर याद आ जाता है कोई काम।सोचती हूं आज रात को सोने
सपने सच होते हैंबस पूरी शिद्दत के साथ उनके पीछे लगे रहो, बढ़ते रहो उनकी की तरफ, धीरे -धीरे लगातार बिना थके बिना रुके,तो सपने सच होते हैं।बुझने न दो उन्हें, छुपा लो मन के कोने में, सुलगने दो उन्हे
ज़िन्दगी कविता कब रचती है,जब मां बच्चे को जन्म देती है, बच्चे की तपती बुखार में सारी रात सिरहाने बैठी रहती है,जब पिता अपने रोते बच्चे को जिन्दगी का सबक सिखाने पहली बार स्कूल छोड़ कर आता हैतब जिन्
जो सोचते हैं वो भूल कर भी नहीं होता, जो नहीं सोचते हैं वो अक्सर हो जाता है। सोचते हैं हम----सूरज की रोशनी कभी मद्धम नहीं हो सकती। चांद की चांदनी कभी खत्म नहीं हो सकती। सितारों कीे
नन्हीं सी जान को दूध पिलाते वक़्त, सबकी नजर से बचाने का उपाय है मां का आंचल..... &n