हर दिन सोचती हूं, आज जरुर लिखूंगी,
वो जो मेरे मन में उठा है।
बस इतना सा काम समेट लूं फिर हाथ में लूंगी -"मेरी डायरी और पेन "
लेकिन इतने में फिर याद आ जाता है कोई काम।
सोचती हूं आज रात को सोने से पहले जरुर लिख दूंगी ,"सब कुछ"
जो मन में उमड़ घुमड़ रहा है।
रात को डायरी व पेन लेकर शुरू करना ही चाहती हूं कि लाइट गुल।
सोच रही हूं, आज कोई नहीं है घर पर एकदम अकेले हूं, फटाफट काम समेट कर लिखूंगी वो सब जो इतने सालों से कैद है मन के एक कोने में,
लेकिन अचानक दरवाजे की घंटी बजती है और कुछ अनचाहे मेहमान घुस आते हैं घर में,
ओर मै मुस्कुरा कर फिर उनकी सेवा में लग जाती हूं।
कई सालों बाद आज वक्त मिला है,
आज वो सब कुछ लिख देना चाहती हूं, जो कैद है, वषों से मन के कोने मे जो सिर्फ वक्त की कमी की वजह से दब गया है, कई -कई परतों के नीचे , सोचा था आज वो सब कुछ लिख दूंगी जो इतने सालों से संजोकर रखा है मन के एक कोने में।
लेकिन
जब लिखने बैठी हूं तो शब्द ही सारे खो गए है, अर्थ सारे सिमट गए हैं, अहसास सब मिट गए हैं।