सोच रही हूं लिख दूं वो सब जो
दिल में उमड़ - घुमड़ रहा है,
बांध दूं शब्दों के दायरे में वो सब
जो मन के कोने में पल रहा है।
मन का वो दर्द जो कभी
बर्फ सा जम गया है ओर
कभी मोम सा पिघल गया है
कभी आंखों के जरिए बादल सा बरस गया है।
तो कभी सब कुछ मुट्ठी से रेत सा फिसल गया है,
कभी कुछ कांच सा कहीं चुभ गया है,।
कभी जाम सा छलक गया है ओर
कभी कहीं उम्मीद का दामन भी छूट गया है,
इस तरह कभी कुछ टूट गया है,
कुछ किरच गया है कुछ बिखर गया है,। लेकिन..........
लेकिन तुम्हारे आने से मेरा "लम्हा- लम्हा संवर गया है"।