आप अजीब शब्द लगता है मुझे क्यूंकि जब लोग मिलते हैं तो अजनबी होते हैं तो आप बोलते हैं. . मगर तुम जब गुस्सा होते थे तब बोला करते , या फिर तब जब बहुत प्यार से बात करनी होती थी तुमको. . कहाँ जानती थी जब मिली थी तुम्हें ये सब मैं ... याद है जब बारिश के इसी मौसम मैं पहली बार मिली थी तुमसे, छाता बदल गई थी हमारी, जबकि आदमी और औरतों की छाता तो अलग अलग होती है, तब भी. . कितनी दूर तक आये थे तुम मेरे पीछे उस मॉल से. . और आते ही बोले थे सुनो. . तुम गलती से मेरी छाता ले आई हो. . और मैं तपाक से बोली, माफ़ कीजियेगा मुझे कोई शौक नहीं हैं मेंस छाता रखने की. . तुम बोले थे, पर मुझे है वोमंस छाता रखने की, क्यूंकि ये मेरी माँ का छाता है. . मैंने तब गौर से पहली बार देखा तो देखने मैं एक जैसी थी दोनों छाता मगर हैंडल दोनों का अलग था. . तब सॉरी कहकर जब तुम्हारी छाता तुम्हें दी तो तुम्हारा स्पर्श पहली बार महसूस किया था. . न जाने क्या अपनापन था जो मुझे बुरा नहीं लगा बल्कि अच्छा लगा था. . फिट तुमने थैंक यू बोला, और बोले थे देखने में जितनी खूबसूरत हो चलो स्वभाव भी उतना खूबसूरत है, नहीं तो अक्सर देखने में नहीं आता. . मैं भौंचाक थी कि पहली मुलाक़ात मैं कोई इस तरह बात कैसे कर सकता है. पहले सीधे तुम और फिर इतने सीधे सीधे तारीफ़. . मगर तुम तो तुम थे. . और ये मेरा अड़ियल दिल जिसे सबसे अलग ही पसंद था हर कुछ, शयद तभी तो तुम भा गए थे. . सोचती रही थी तुम बद्तमीज हो या फिर सीधे सिमल से. . और जब जाना तो पता चला सीधे और सिम्पल हो. बेहद आम मगर बहुत खास. . हाँ ख़ास क्यूंकि मेरे अड़ियल दिल को तमीज सिखा दी थी तुमने. . दूसरी मुलकात पर मैंने फिर वही किया और फिर कितना हँसे थे हम. . और तीसरी मुलाक़ात पर जान बूझकर तुमने. .. आज सोचूं तो हंसी आती है और आँखों में नमी भी. . कितने अलग थे तुम. . मुह्हब्ब्त में भी अलग और दिल तोड़कर जाने में भी अलग. . नहीं तो कोई किसी की ख़ुशी के लिए किसी का दिल तोड़ता है क्या ? पर तुमने तो किया, और यूँ अजनबी बन गए जैसे मुझे जानते ही नहीं. . वो भी तब जब मैं सच जान गई थी. .
सुनो. . जानते हो आज भी तुम्हारा आप चुभता है मुझे. . जब भी कोई मुझे आप कहकर बुलाता है. .. चुभता क्या अच्छा भी तो लगता है. मन होता है कह दूँ तुम कहकर पुकारो. . मगर दुनिया तुम्हारी थोड़ी न है एकदम पलट. . पर तुम पलट तो नहीं थे दुनिया से. सबसे आप कहकर बात करते थे. . फिर मुझसे ही तुम क्यों कहते रहे. .. पहली मुलाक़ात से तुम. .. सौ में पड़ जाती हूँ ये आप अलग था या फिर वो तुम. . जो पहली मुलाक़ात से शुरू हुआ और आखिरी मुलाकत पर भी जस का तस था. . याद है तुमसे पूछा तो क्या कहा था तुमने , तुम किसी को तुम नहीं कहते थे कभी. . मगर न जाने क्यों तुम्हारे लिए उस दिन तुम निकला और अभी तक तुम ही निकलता है. . जब पूछा ऐसा क्यों करते हो तो बोला था खुद पता लगाओ. . मुहब्बत मैं एक दूजे से राज नहीं रखने चाहिए.. मगर कुछ बातें खुद पता चले तो प्यार दुगना हो जाता है. .. उफ्फ्फ यही तो हुआ था जब पहली बार उस नकली गुस्से में तुमने मुझे आप कहकर बुलाया , वो भी बस इसलिए क्यूंकि मैंने तुमको इंतज़ार करवाया था. . वो भी पूरे एक घंटे का. .. उप्स ! और तुम करते रहे थे इंतज़ार. . फिर भी मुझसे गुस्सा नहीं हुए, बल्कि फिर भी खा, कभी कभी महबूब की ऐसी परीक्षा ले लेनी चाहिए " आपने " अच्छा किया ज मेरी परीक्षा ली. . चौंक गई थी आप शब्द सुनकर. .. मुझे उस तरह देखकर जोर से ठहाका लगाकर हंस पड़े थे तुम. . और जब हंसने की वजह पूछी तो बोले थे जब अगली बार तुम्हें आप कहकर पुकारूंगा तब समझ जाओगी. . फिर इंतज़ार किया की कब आप कहोगे. .
और फिर एक बारिश की शाम आई..
थे हम तुम उस दिन बिलकुल अकेले. .
रोड पर एक्का दुक्का ही लोग थे. .
चल रहे हाथों को हाथों से पकड़कर. .
मुहब्बत जो नहीं की थी दुनिया से डरकर. .
तभी चलने लगी थी हवा जोरों से,
और पड़ने लगी सावन की पहली बारिश. .
था छाता उस दिन एक,
और हम तुम दो मगर दिल से थे एक ..
थोड़े भीगे थोड़े सूखे चल रहे थे,
किसी सूखे स्थान की खोज क्र रहे थे. .
और फिर मिला वो पेड़ घना सा,
रुक गए हम मगर तूफ़ान था जोर का. .
तभी नजर पड़ी थी तुमपर मेरी. .
और नजर झुक गई थी हमारी. .
और फिर सूना मैंने वो शब्द " आप " फिर से,
जो निकला था नशे में मुहब्बत के. ...
पास आये तुम और हाथ मेरा पकड़ा,
बोले आप हो जाइये इस तरफ
पानी काम गिर रहा है इस तरफ. .
प्यार ही प्यार था उस वक़्त निगाह में,
जो पहुँच रहा था मेरी निगाह में. .
तभी बिजली कड़की और तुम्हारे लगी मैं सीने से ,
और तुम हंस दिए थे बाहों में मुझे भर के. .
ऐ खुदा आपका शुक्रिया, जो आपको पास लाया,
देख खुदा को और मुझे ये आप फिर तुम्हारी जुबान था आया ...
उस दिन ही तो जाना कि तुम मुहब्बत मैं होते तो ही आप कहते हो. .. ये आप मेरे लिए तभी से ख़ास हो गया. . अब भी कोई पुकारता है तो सोइ सी दिल की धड़कन जाग उठती है. . और पुकारता है दिल तुमको. और नजर उस कहने वाले को श्रद्धा से देखती है. . जी नहीं सकते थे तुम. . मेरे बिना. . फिर भी मैं जी रही हूँ . . न जाने इस उस स्वर्ग के किस कोने से तुम मुझे देख रहे हो मेरी ही ख़ुशी के लिए मेरा ही दिल तोड़कर. दे तो दी तुमने जान अपनी मुझे बचाते हुए मगर जीवन भर को एक बोझ दे गए हो . चले तो गए थे तुम मेरे घरवालों की मर्जी जानकर , रुक जाते तो असमंजस शायद दूर हो गई होती. . और शायद घरवालों के न करने पर भी ये सखी तुम्हारी हो गई होती. . और हाँ शामिल घर से भागने वाली लड़कियों में शामिल हो गई होती. .. मगर किस्मत ने उस खुदा ने "आपको " मुझसे ही चीन छीन लिया. . मेरी कस्मकस को यूँ सदा के लिए दूर कर दिया. ..