उनके लबों से निकला हर शब्द ग़ज़ल है,
उनकी आंखों में रहता समंदर भी ग़ज़ल है,
उनके गेसुओं पे कभी जो एक शब्द कह दूं,
मेरे लिए तो वो एक हर्फ़ भी पूरी ग़ज़ल है।
घटाएं बसती हैं उनकी जुल्फ की छाँव में,
वो घटा अल्फाज में आ जाय वही ग़ज़ल है।
उनके लबों से निकला हर लफ्ज़ ग़ज़ल है,
उनकी तारीफ भी मेरे लिए तो ग़ज़ल है।
क्या करेगी तारीफ कोई ग़ज़ल मेरे महबूब की,
वो तो अपने आप में ही एक खूबसूरत ग़ज़ल है।
शब्द ही कम हुए जो सिर्फ लिखा उनका काजल,
उनकी आंखों का काजल भी तो मेरी ग़ज़ल है।
खूबसूरती देख उनकी हर बार ठहर जाती है कलम,
लिखने बैठती हूँ जो उनपर कोई ग़ज़ल है।
लिखने को लिख ही दी उनकी हर अदा हर्फ़ों में,
क्या समा सकी हर अदा जो कभी लिखी ग़ज़ल है।
उनकी खूबसूरती में एक मीठी सी है कशिश
देती है मेरे शब्दों को भाव तब ही तो बनती ग़ज़ल है। उनकी खूबसूरती देख रूह यूँ ठहर सी गई,
लिख रहे थे कविता देखा तो हम कहे ग़ज़ल है।
©सखी