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वो यादें बचपन की

10 अगस्त 2019

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कितने खेले खेल बचपन में , याद आएंगे वो उम्र पचपन में। गिल्ली डंडा, लट्टू को घुमाना, गिलहरी में फिर साथी को सताना। खो खो बड़ा पसन्दीदा लगता, अंटी तो माँ को ही अच्छा न लगता। जमा करते बड़े भैया जब अंटी, माँ डाँट कर घर से बाहर फेंक देती। सांप सीडी में साँप से काटे जाते, लूडो में तो हम कभी न हारते। गुड़िया का छोटा सा घर बनाते, रंग बिरंगे पत्थरों से सजाते, शादी जब होती उसकी तो, तीन दिन खाना भी न खाते। इक्का दुक्का पसन्दीदा खेल था, मीनार खेल में हाथ तुड़ाया था। फिर घर जाकर माँ ने हमको, और ज्यादा बड़ा सितारा दिखाया था। कभी न भूल सकती उस मार को, और फिर पापा के समझाने और उनके दुलार को। बोले थे जो आज माँ अकेले होती, बोलो तो जरा सब कैसे सम्भालती। गुट्टे तो हमको आज भी हैं भाते, कर्जा होता है माँ कहती और भाई गुट्टे उठाकर दूर फेंक देते। पहिया भाई जब जब चलाता, घर आकर फिर मार जरूर खाता। छुप्पन छुपाई में हमेशा धप्पी लग जाती, #सखी पगली किसी को ढूंढ ही न पाती। मगर जब खुद जो छुप जाती, फिर तो किसी को नजर न आती। कौआ उड़, चिड़िया उड़ पापा के साथ खूब खेला, चिड़िया के साथ हाथी गाय घोड़े सब उड़ाते, और फिर सजा के तौर पर, पापा कभी उल्टी गिनती गिनाते, या फिर मुश्किल सी पहेली बुझाते। रात को जब कभी बिजली रानी जाती, पापा हमारे संग बच्चे हो जाते। माँ को रसोई से कभी फुरसत ही न मिलती, इतने सारे हम लोग ऊपर से खूब मेहमान आते। याद हैं सब बचपन के वो खेल खिलौने, वो गुड़िया, वो लट्टू, वो गुट्टे, वो लाल बॉल, क्रिकेट हो या हॉकी, दौड़ हो या कब्बडी, हमने हर खेल बचपन में खेला है, और बड़े हुए तो कहते हैं ये जिंदगी उफ्फ झमेला है। 🤣🤣😂😜 ©सखी
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रचनाएँ
Adhuraishq
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सुनो ! ये इश्क़ क्यों अधूरा है, जबकि इसमें तुम हो मैं हूँ..
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आप

17 जुलाई 2019
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आप अजीब शब्द लगता है मुझे क्यूंकि जब लोग मिलते हैं तो अजनबी होते हैं तो आप बोलते हैं. . मगर तुम जब गुस्सा होते थे तब बोला करते , या फिर तब जब बहुत प्यार से बात करनी होती

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लड़की

18 जुलाई 2019
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खेलती- हँसती मुस्कुराती हुई लड़की, बचपन खुशी से हाँ जीती हुई लड़की, घर में ही रहने की हिदायत मिली है, आने जाने की टोक सहती हुई लड़की। हर कदम पर ताना सुनती हुई लड़की,

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वो यादें बचपन की

10 अगस्त 2019
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कितने खेले खेल बचपन में , याद आएंगे वो उम्र पचपन में। गिल्ली डंडा, लट्टू को घुमाना, गिलहरी में फिर साथी को सताना। खो खो बड़ा पसन्दीदा लगता, अंटी तो माँ को ही अच्छा न लगता। जमा करते बड़े भैया जब अंटी, माँ डाँट कर घर से बाहर फेंक देती। सांप सीडी में साँप से काटे जाते, लूडो में तो हम कभी न हारते। गुड़िया

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शायरी

10 अगस्त 2019
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तेरे बिन भी कभी हमें जीना होगा सोचा कहाँ था, बिन धड़कन के भी दिल धड़केगा सोचा कहाँ था, हमको तेरी खबर जमाने से अब तो मिलने लगी हैं, तू इस तरह हमसे बेखबर हो जाएगा सोचा कहाँ था। ©सखी

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वो ग़ज़ल है

23 सितम्बर 2019
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उनके लबों से निकला हर शब्द ग़ज़ल है,उनकी आंखों में रहता समंदर भी ग़ज़ल है,उनके गेसुओं पे कभी जो एक शब्द कह दूं,मेरे लिए तो वो एक हर्फ़ भी पूरी ग़ज़ल है।घटाएं बसती हैं उनकी जुल्फ की छाँव में,वो घटा अल्फाज में आ जाय वही ग़ज़ल है। उनके लबों से निकला हर लफ्ज़ ग़ज़ल है,उनकी तारीफ भी मेरे

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मेरा गाँव

23 सितम्बर 2019
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मेरा गाँव अब शहर सा हो गया है, बाकी तो नहीं पता, कंक्रीट पत्थर लिया है।मेरा गाँव अब शहर हो गया है।थे कई घर मेरे गाँव में मेरे, जहाँ पड़ जाती नींद आ जाती थी,इन मखमली गद्दों पे नींद आती नहीं,मेरा घर भी तो अब एक हो गया है।मेरा गाँव अब शहर हो गया है।पहले नीम की छांव ठंडक देती थी,सुराही का पानी ठंडा होता

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स्वच्छ भारत

2 अक्टूबर 2019
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स्वच्छ भारत सोच रही हूँ मैं सुबह से, स्वच्छ भारत पर क्या लिखूँ🤔 ये अरमान है प्रधानमंत्री का, या फर्ज है हम सब का🤔 अपना घर साफ करते हम, कूड़ा उठाकर बाहर डाल देते हम🤦🏻‍♀ जैसे अपना घर ही अपना है😇 बाकी का भारत बस पी एम का सपना है.. 🤷🏻‍♀ नगरपालिका आएगी तो ये करेगी😛, नगरपालिका आयेगी तो वो करेगी,🧐

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