मेरा गाँव अब शहर सा हो गया है,
बाकी तो नहीं पता,
कंक्रीट पत्थर लिया है।
मेरा गाँव अब शहर हो गया है।
थे कई घर मेरे गाँव में मेरे,
जहाँ पड़ जाती नींद आ जाती थी,
इन मखमली गद्दों पे नींद आती नहीं,
मेरा घर भी तो अब एक हो गया है।
मेरा गाँव अब शहर हो गया है।
पहले नीम की छांव ठंडक देती थी,
सुराही का पानी ठंडा होता था।
अब तो कूलर हर घर आ गया है,
नीम का पेड़ कटवा दिया है।
मेरा गाँव अब शहर हो गया है।
हर ओर थी बस हरियाली,
न धुँआ न प्रदूषण हवा मतवाली,
आमों के पेड़ों पर चढ़ते उतरते,
बीते कई बरस मस्ती करते।
कंक्रीट के जंगल अब वहाँ उगे हैं,
हरियाली को प्रदूषण लगा है।
मेरा गाँव अब शहर हो गया है।
©सखी