खो गयी हूंँ मैं, हूंँ इसी जमीं पर , पर अपनों के बीच खो गयी हूं मैं!
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<p>अपने को अधुरी समझने लगी हूं मैं</p> <p>जिंदगी के धुप,छांव से जुझने लगी हूं मैं!</p> <p> &nbs
<p>मां की परिभाषा ही बदल जाती है,</p> <p>जब एक मां अपने ही जन्माए हुए बच्चों से नफरत पाती है!</p>