कभी बुलाने पर कभी बिन बुलाये
बेटियां अधिकार के साथ
मां पापा के घर पहुच जाती है
सभी चिंताओ सेमुक्त देर तक सोती है
मनुहार कराती है मां से बचपन की तरह
फरमाईसे करती है अपनी पसंद की
वो वेफिक्र हो बचपन की यादो को जीती है
वही पिता के न रहने पर मां की चिंता करती
मां भाई के बुलावे सकुचाती सी मैके आती है
वो बडी हो जाती है किसी से कुछ नही कहती भाभी का हाथ बटाती कामो मे भाईको जिम्मेदारी उठाते देख पापा को याद करती
भाभी को मां का ख्याल रखते देख संतुष्ट होती
फिर मां के न रहने परकुछ टूट सी जाती
मैके आने को व्याकुल होती आतीकभी कभी
फिर भी इन्तार रहता भाई भाभी भतिजे के बुलावे का अपने बचपन के अंगन मे चहकने का