पचास के पार हो कर सोचती हूं
इस उमर तक काम बहुत किया।
कही नौकरी नही किया
हां अपने परिवार के लिए जिया ।
खट्टे, मीठे अनुभवो के साथ
पूरे आनन्द और उमंग के साथ।
बिना किसी की परवाह किये
अपनी जिम्मेदारियो को पूरा किया ।
अब पचास की उम्र के बाद
फिर से नये उत्साह को ले कर ।
एक नयी कोशिश के साथ
नये उर्जा और विश्वास के साथ ।
बिना हार जीत की परवाह किये
एक फैसला लूगी खुद के लिये ।
ससुराल और मैके के उम्मीदो
औरफैसलो से बाहर आकर ।
जो भी जीवन शेष है
उसे जी भर कर जीने की चाह लेकर ।
खुद की खुशी के लिये ये बाते
मेरे बच्चे अब मुझे येसिखा रहे।