मै मां पापा की लाडली
अन्नंत सपनो से अआंखे भरी ।
चाह पंखो को फैला कर उड़ने की
आसमान के ऊचाईयो को छूने की ।
बडी हो रही थी सपनो को लिए
तभी परिस्थियो और संस्कारो ने पर बांध दिए ।
पत्नी ,बहु,मां बन नये जिम्मेदारियो मे उलझी
हर पल नये अनुभवो से जूझती ।
नन्ही किलकरियो मे रमी
अपना अस्क देखती अपनी बेटी मे कही ।
पर मै नही भूली अपने सपनो को
अपने हिम्मत और हौसलो को ।
बेटियो को अपने सपनो संघ जीने दिया
सपना सच करने की हिम्मत और हौसला दिया।
हर ली उनके राह की सभी बधाए
जी रही थी मै भी उनके संघ अपने सपने लिए ।
एक लम्बे इन्तजार के बाद सच मे
अपने सपनो को सच होते देखा ।
मेरी बेटी अपने परो को फैलाए गगन को छू रही
मेरी बेटी सचमुच मेरे सपनो को जी रही