परदेश बसी हूं ,भाई राखी है सूनी
अगर साथ होते खुशी होती दूनी।
मै मंगल मनाऊ दुआ करती इतनी,
है घायल हृदय दर्द उठता है खूनी ।
हमे याद बहुत आती तुम्हारी है भाई,
धधकती है ज्वाला पर सती न बन पायी ।
है पती के बचन से बधे मेरे पैर भाई ,
तेरे विना बुलाये भाई घर मै कैसेआ जाती।
मै हूं यहां पर भाई नही है ,
थाल राखी सजी है पर कलाई नही है ।
है सावन की पूनम पर पर कुछ तो कमी है
आज बहना के संघ उसका भाई नही है ।
है भेजी जो रखी वो पहुची तो होगी ,
तेरी कलाईयो पर बधी भी तो होगी ।
रेशम सी कोमल पर रक्तो बधी है ,
आशीषो को देती यह बहना खडी है ।
रचना शुक्ला