वो बरखा की बूंदो संघ ,वो सावन का आना ।
वो बागो मे डालो पर ,झूलो का पड़ना ।
वह झूले की मस्ती,और सखियो से अनबन।
वह अमवा की डाली पर रस्सी की उलझन । वो सभी बहन बेटी का वो अपने मैके का आना ।
वो सखियो मिलना और वो रूठना मनाना ।
वो गुडिया के मेले मे जाने की बन ठन ।
वो ढोलक के धापो सावन की कज़री ।
वह शंकर की भक्ति वह गौरी का पूजन।
वो धरती की धानी चुनर का पहना ।
कहां तक बखनू मै बरखा का सावन ।
वो दादुर की बोली वह मोरो का नृत्यन ।