प्यारे भाइयों और बहनों ,दोस्तों ,जैसा भी माने , सम्मानित पाठकों ! मेरा अभिवादन स्वीकार करें।अभी तक मैंने कई धारावाहिक लिखे ,जिनमें सबसे बड़ा धारावाहिक ''बदली का चाँद ''है ,जो अभी भी चल रहा है। अभी मैं एक नया धारावाहिक लिखने जा रही हूँ - ''ऐसी भी ज़िंदगी '' इसमें जो भी पात्र होंगे काल्पनिक होंगे ,वास्तविकता से इसका कोई ताल्लुक नहीं होगा। यदि उस कहानी में कुछ पात्र या कुछ घटनाएं किसी के जीवन से मिलती-जुलती भी हैं ,तो ये मात्र एक संयोग होगा। यह रचना मेरी सोच की उपज है यानि ये कृति पूर्णतः मौलिक होगी। मेरे धारावाहिक को पढ़ने के लिए ,मुझे फॉलो और सब्सक्राइब भी कर सकते हैं। बाक़ी आपकी इच्छा !!! कहानी की रोचकता को , बनाने के लिए इसमें कई चीज़ें अलग भी हो सकती हैं। कृपया अपना सहयोग बनाये रखिये और प्रोत्साहन देते रहिये -
इस उपन्यास में ,एक ऐसी लड़की की कहानी है ,जो हमारे ही सभ्य समाज का हिस्सा है। ये कहानी उसी के जीवन पर आधारित है जो एक मध्यम वर्गीय परिवार से ताल्लुक़ रखती है। हमारे समाज में ,सभ्य लोग वही माने जाते हैं। जो पढ़े -लिखे हों ,शरीफ़ ,सज्जन कहे जाते हैं। ये लड़की भी तो ऐसे ही परिवार की पैदाइश भी है आगे जाकर ही ऐसे परिवार में जाती भी है। फिर उसकी ज़िंदगी में ऐसा क्या विशेष था ?जो वो एक कहानी बन गयी।
नारी जीवन की कथा कोई नई नहीं है ,नारी का जीवन तो पहले से ही संघर्षों से भरा होता है ,उन संघर्षों से जूझने के लिए होता है। ये कहानी पारिवारिक ही नहीं ,सामाजिक भी है ,जिसमें समाज से जुड़े ,ऐसे लोगों के चेहरे देखने को मिलेंगे ,जो सभ्य समाज की ही एक इकाई हैं। उन शरीफ़ों के मुखौटे उतारती नजर आती है।शरीफ़ लोगों की बस्ती में रहकर ,शराफ़त भी कब तक सज्जन बनी रहती है ?
लोग बदल जाते हैं ,नारी बदल जाती है ,बदलता नहीं है तो उसका संघर्ष ,जो आज भी जारी है और वो आज भी संघर्षरत होते हुए ,अपनी पहचान बनाती भी है और आगे भी बढ़ती है ,ऐसी ही तो है ,हमारे धारावाहिक की नायिका ''नीलिमा सक्सैना '' जो आज एक सशक्त ''समाज सेविका ''है। जो आज बहुत ही जल्दी में है ,क्योंकि आज उसकी बेटी ,विदेश में पढ़ाई करने जा रही है। आज वो बहुत प्रसन्न है ,तभी बेटी भी अपनी बहन के साथ ,गाड़ी चलाते हुए अपनी माँ के दफ्तर में आ जाती है।
ममा ! जल्दी आओ ! मुझे देरी हो रही है।
अभी आई बेटा !कहते हुए वो बाहर आ गयी। भाई को कहाँ छोड़ आई ?
घर पर ही है ,उसका चम्पा ख़्याल रख रही है। आप जल्दी आइये ,मेरी 'फ्लाइट ''का समय हो रहा है।
हाँ -हाँ आ रही हूँ ,अपने दफ्तर की सीढियों से उतरते हुए बोली -मुझे भी मालूम है तुझे जाना है ,इसीलिए तो मेरे दफ्तर में थोड़ा काम था ,पहले आ गयी। बेटे ,वो काम भी तो जरूरी था ,कहते हुए ,उसने गाड़ी का दरवाजा खोला और आगे बैठ गयी और पीछे की तरफ देखते हुए ,जहाँ बड़ी बेटी कल्पना पहले से ही बैठी थी। उससे बोली -बेटा अपनी बहन को ''एयरपोर्ट ''पर छोड़ने जा रही हो ,तो उसी के संग बैठ जातीं। फिर पता नहीं ,ये कब आये ? कब इसकी पढ़ाई पूरी होगी ?
नहीं मम्मा ,ये जा रही है ,तो हम सभी से दूर जा रही है ,सबसे ज्यादा तो आपको ही ख़ुशी है और आपको ही दुःख होगा ,मैंने सोचा -कुछ समय तो माँ -बेटी को संग बिताने देते हैं।
अपनी बेटी की बड़े -बूढ़ों जैसी बातें सुनकर ,नीलिमा हँस दी और बोली -धन्यवाद !हमारे घर की बड़ी -बूढी ने हमारे लिए इतना सब सोचा।
गाड़ी शिवांगी ही चला रही थी ,गाड़ी तो तीनों ही माँ -बेटी चला लेती हैं ,गाड़ी को पार्किग में खड़ा करके वो लोग आगे बढ़ती हैं। एक सीमा पर जाकर वो लोग बाहर ही रह जाती हैं ,शिवांगी आगे बढ़ने से पहले अपनी मम्मी और अपनी बहन से गले मिलती है और आगे बढ़ जाती है। उसके दूर जाते ही ,नीलिमा का चेहरा उदास हो गया।
वो कुछ देर इसी तरह खड़ी रही ,कल्पना ने उसका हाथ पकड़ा और बोली -मम्मा आपका एक सपना तो पूर्ण हुआ। कुछ देर पश्चात वो लोग वापस लौट रही थीं ,नीलिमा ,सोच रही थी -मेरी बेटी वैसे हैं तो बड़ी होशियार ,सोचकर मन ही मन मुस्कुराई। उसने बाहरवीं की परीक्षा दी उसके साथ ही उसे ''स्कॉलर शिप ''मिली और बाहर जाने का मौका भी। कितनी खुश थी, मैं...... आज तक हमारे ख़ानदान में कोई भी विदेश पढ़ाई करने नहीं गया। इस लड़की ने मेरा सर ऊँचा कर दिया ,सोचते हुए ,उसकी आँखों से कुछ बूँदें बह चलीं।
कल्पना ने ,देख लिया और बोली -मम्मा अब भी रोना......
नहीं ,अब नहीं रो रही ,ये तो ख़ुशी के आंसू हैं ,फिर मुस्कुराते हुए बोली -जब दुःख के आंसुओं को महसूस किया है तो ख़ुशी के आँसुओं का भी मजा तो लेने दो , कहकर वो हँस दी ,कल्पना भी अपनी माँ के ज्ञान पर हंस दी।
कल्पना नीलिमा की बड़ी बेटी है ,जो अभी दिल्ली में रहकर,मास्टरी की पढ़ाई पढ़ रही है। वो भविष्य में अध्यापिका बनना चाहती है। वो अपनी माँ के बहुत करीब है ,पहली बात तो , वो नीलिमा का पहला बच्चा है ,दूसरे जब नीलिमा दुःख और परेशानियों से घिरी थी ,तब ये बहुत छोटी थी किन्तु समय ने इसे शीघ्र ही बड़ा बना दिया।
मम्मा चलिए उतरिए ,घर आ गया ! नीलिमा जैसे सोते से जगी हो ,अपनी बेटी के कहने पर गाड़ी से बाहर आकर ,घर के अंदर गयी। बेटे को चम्पा ,खाना खिला रही थी। आज घर में ,एक सदस्य कम हो गया। आज शिवांगी अपने तीन वर्ष के कोर्स के लिए ,विदेश चली गयी। कल्पना भी ,एक सप्ताह की छुट्टी पर आई थी ,वो भी चली जाएगी। अब तो हम दोनों माँ -बेटा ही रह जायेंगे ,सोचकर उसने अथर्व को गले लगा लिया।