नीलिमा की मम्मी पार्वती को ,अपनी बेटी के ,अपने से दूर जाने का दुःख है ,तो दूसरी तरफ उसे एक अच्छी ससुराल मिलने की प्रसन्नता भी है। बेटी की प्रसन्नता में , अपने सभी दुःख भुला देना चाहती है ,किन्तु कुछ ग़म ऐसे हैं ,जो समय -समय पर उसके दुखों का एहसास दिला जाते हैं। नीलिमा को धीरेन्द्र का फोन आता है ,नीलिमा अपने परिवार में डरी - सहमी सी रहती है और धीरेन्द्र का बातचीत का अंदाज बहुत ही निराला है ,वो कुछ भी अपने दिल की बात करता है तो खुले दिल से करता है। उसका ये अंदाज धीरे -धीरे नीलिमा को भाने लगता है और नीलिमा भी अब प्रसन्न रहने लगती है ,उसे लगता -जैसे वो उसी के लिए बना है। धीरेन्द्र अपने दोस्तों की ,अपनी सभी बातें उससे बांटता ,उसे बताता। एक दिन नीलिमा ने ,धीरेन्द्र से पूछा भी...... क्या मैं तुम्हें पसंद हूँ तुमने तो मुझे देखा भी नहीं।
तुमने भी तो ,मुझे नहीं देखा धीरेन्द्र ने प्रश्न के जबाब में प्रश्न किया।
हाँ , तुम्हारी एक फोटो देखी है ,नीलिमा हिचकिचाते हुए बोली।
वही तो.... मैंने भी तो तुम्हारी फोटो ही देखी है ,क्या तुम्हें मैं पसंद नहीं ?
फोटो में तो अच्छे लग रहे हो !तुमने मेरी कौन सी फोटो देखी है ? मुझे तो मालूम ही नहीं ,पापा ने तुम्हें कौन सी फोटो दिखाई है ?
वही ,जिसमें तुम दो चोटी में खड़ी हो ,सीधी -सादी सी बच्ची लग रही हो।
वो तो मैं हूँ।
उहहहहहह ,देखेंगे !ये बच्ची जब हमारे घर आती है ,तब क्या जलवे दिखाती है ?
मुझे क्या जलवे दिखाने ?मैं जैसी दिखती हूँ ,वैसी ही हूँ।
कहाँ ?????तुम तो....... शुरू में तो बड़ी डरी -सहमी सी थीं किन्तु अब देखो !मेरे भी कान काटने लगीं। इसीलिए तो कह रहा हूँ मेरी जान...... हमारे सम्पर्क में जो भी आता है। वही स्मार्ट हो जाता है।
जी नहीं ,स्मार्ट तो मैं पहले से ही हूँ। अब ये बात छोडो ! ये बताओ !मैं तुम्हें पसंद तो आ जाऊँगी न......
अब जैसी भी होगी ,झेलना तो मुझे ही होगा ,धीरेन्द्र गंभीर होते हुए बोला।
नीलिमा ने उसकी बात का बुरा नहीं माना और बोली -ठीक ही तो है ,तुमने हाँ की है ,झेलना भी तुम्हें होगा।तभी नीलिमा की चचेरी बहन आ जाती है ,और कहती है -दीदी !इतना हँस -हंसकर किससे बात कर रही हो ?
कोई नहीं ,मेरी एक सहेली है।
कौन सी सहेली ? मैं तो तुम्हारी ऐसी किसी भी सहेली को नहीं जानती ,जिसके घर में फोन लगा हो। जहाँ तक मैं आपकी जितनी भी सहेलियों को जानती हूँ ,उनके यहाँ किसी के घर में भी फोन नहीं है। ये कौन सी नई सहेली आ गयी। कहीं तुम..... हमारे होने वाले जीजाजी से बातें तो नहीं कर रहीं।
नीलिमा की तो जैसे चोरी पकड़ी गयी ,वो घबराकर बोली -भला मैं उनसे बातें क्यों करने लगी ?मेरे पास तो उनका नंबर भी नहीं।
उधर धीरेन्द्र को भी ,दोनों बहनों की बातचीत की आवाज़ आ रही थी और वो बार -बार हैलो !हैलो कर रहा था। तब डिम्पी बोली -लाओ !एक बार मुझे भी अपनी उस सहेली से बात करने दीजिये। कहकर उसने जबरदस्ती सी करते हुए ,नीलिमा से फोन ले लिया। बोली -हैलो !
उधर से आवाज आई , हैलो ,साली साहिबा ! आपकी दीदी ने तो बताया ही नहीं कि हमारी एक सुंदर ,स्मार्ट और चुलबुली साली साहिबा भी हैं।
वाह जी वाह !आप तो बड़े पारखी हैं ,जो फोन में से ही देख लेते हैं कि हम सुंदर हैं ,स्मार्ट हैं और तो और चुलबुली भी हैं ,डिम्पी जोर -जोर से बोल -बोलकर ,नीलिमा को चिढ़ा रही थी। बोली -दीदी देखो ! आपकी सहेली मेरी कितनी प्रशंसा कर रही है ?तब धीरेन्द्र से बोली -क्या जीजाजी !!!!! आ,पने मेरी बहन को भी इसी तरह की गोली देकर पटाया किन्तु ये आपकी साली पटने वाली नहीं दीदी तो भोली है ,हम नहीं !
जब हमारे सम्पर्क में आ जाओगी, तो हमारे ही गुणगान करोगी धीरेन्द्र बोला।
जब तक डिम्पी उसकी बात सुनती ,उससे पहले ही उसने ,रिसीवर नीलिमा के हाथ में ,थमा दिया था। जो बात ,वो डिम्पी से कह रहा था ,वो लाइन नीलिमा ने सुनी और बोली -अपने बड़े गुणगान कराने का मन कर रहा है। ऐसे तुममें कौन से ''सुर्खाब ''के पर लगे हैं ?जो तुम्हारा गुणगान करने लगे। अभी तो मैं ही कोई गुणगान नहीं करती ,मेरी बहनों की तो बात ही अलग है।
वो भी कहाँ हार मानने वाला था ,बोला -जलन.... तुम्हें अपनी बहन से ,मुझे बात करते देख जलन हो गयी न...... यानि मुझे लेकर तुम बहुत ही गंभीर हो। हुम्म्म स्वार्थी भी होती जा रही हो ,कहीं मैं किसी और को न पटा लूँ।
इस बात पर नीलिमा को क्रोध आया और बोली -यदि तुम्हें किसी और को पटाने की लालसा अभी बाक़ी है ,तो विवाह क्यों कर रहे हो ?अपनी ये लालसा ही पूर्ण कर लीजिये।
यार!!!!!!!!तुम तो बुरा मान गयीं ,मैं तो मज़ाक कर रहा था। इससे पहले ही ,नीलिमा ने फोन रख दिया। वो सोच रही थी -इस तरह की बातें करना शायद इसकी आदत में शामिल है। मैं तो सोच रही थी - ये मेरे से ही इस तरह बातें करता है ,मेरे लिए ही इसके मन में ,अच्छी भावनाएँ हैं ,किन्तु ये तो किसी से भी इस तरह की बातें कर सकता है। जो इसकी आदत बन चुकी है। यही सब सोचकर ,नीलिमा का मन उदास हो गया ,वो समझ नहीं पा रही थी। इसकी ये जो भी भावनाएँ थीं मेरे ही लिए थीं या फिर आदत के अनुरूप ,जो भी लड़की दिखे उसी से घुल -मिल जाता होगा। अभी उसकी बातों से जैसे उसके चेहरे पर मुस्कान आ रही थी ,आज की बातों से उसका मन उदास हो गया। उसका किसी भी कार्य में दिल नहीं लग रहा था। उसका मन कर रहा था कि वो रो दे और किसी से अपने दिल की बात कहे। उससे पूछे ,क्या ज़िंदगी में ,ऐसा भी होता है ? जो चीज तुम्हारी अपनी है ,उसे तुम किसी से कैसे बाँट सकते हो ?आज का सम्पूर्ण दिन ऐसे ही बीत गया।
अगले दिन ,नीलिमा की बड़ी बहन कुछ सामान की खरीददारी के लिए ,शहर आई थी तब लौटते समय अपने घर भी आ गयी। अपनी छोटी बहन को देखने , किन्तु नीलिमा का उदास चेहरा देखकर ,बोली -क्या हुआ ?तू इस तरह उदास क्यों लग रही है ?
कुछ नहीं !
कुछ नहीं कैसे ?तेरा चेहरा बता रहा है कि तुझे कोई बात अवश्य ही परेशान कर रही है।
अपनी बहन से बता ,अब तेरी बहन को ज़िंदगी के बहुत अनुभव हो गए हैं। मैं किसी से कुछ भी नहीं कहूंगी अपनी बहन की परेशानी से उसकी जिज्ञासा बढ़ती जा रही थी। अब कुछ बतायेगी भी या इसी तरह मौन रहना है। तेरे जीजाजी चल देंगे ,तब बताएगी।
वो..... दीदी !उसका...... फ़ोन आया था।
किसका ????
उसी लड़के का ,झुंझलाकर बोली -समझतीं क्यों नहीं ?
ओ........ तो ये बात है। ये बात तो है ,कि पापा ने तेरे और उसके मिलने या बातचीत का माध्यम कर दिया। हमारे समय में तो फोन नहीं लगवाया ,अब कम से कम तेरी उससे बात तो होगी दोनों एक दूसरे को समझने का प्रयत्न करना और वो अपने किस्से सुनाने को उत्सुक हो गयीं। तब नीलिमा ने उसे रोका और बोली -अभी आप मेरी बात सुनने वाली थीं न।
हाँ ,चल बता !!
दीदी ! वो बहुत ही हंस -हंसकर बातें करता ,खुले विचारों का लग रहा था किन्तु.......
किन्तु क्या.....?
पूरी बात सुन तो लो !बीच में ही बोलती रहोगी ,तो मैं कैसे बता पाऊँगी ?
अच्छा बता तो.... क्या हुआ ?
आज जब मैं बात कर रही थी ,तभी डिम्पी आ गयी और वो उससे भी इसी तरह से बातें करने लगा ,जैसे मुझसे करता है।
तो क्या हुआ ?डिम्पी उसकी साली लगती है ,उसी नाते उससे हँसी -मजाक कर रहा होगा।
किन्तु दीदी ,मुझे तो लगता है ,ये उसकी आदत है ,और वो किसी से भी इसी तरह बातें कर सकता है ,मैं सोच रही थी ,ये बातें मेरे लिए ही हैं किन्तु...... जब कोई चीज तुम्हारी अपनी है ,उसे तुम कैसे बाँट सकते हो ?