नीलिमा के मायके में , इस बात पर किसी को भी विश्वास नहीं हो रहा था। एक दो बार फोन भी किया किन्तु किसी ने उठाया नहीं। पार्वती और उनकी बेटी का तो रो -रोकर बुरा हाल था। जाना तो पड़ेगा ही ,सच्चाई क्या है ?वहीं जाकर मालूम होगा। मयंक ने तो गाड़ी भी कर दी , कुछ देर पश्चात ही , गाड़ी भी आ गयी। सभी उदास मन से गाड़ी में बैठे ,किसी को भी कुछ नहीं सूझ रहा था। किसी का भी मन नहीं हुआ कि कुछ खा -पी लें।
तभी चंद्रिका की चाची बोली -हल्का सा कुछ खा लेते हैं ! अभी तो सही से जानकारी भी नहीं ,कुछ भी पता नहीं ,कि हुआ क्या है ?जाने में भी समय लगेगा और बेटी का घर है ,न जाने वहां कितना समय लग जाये ?कहते हुए ,वो वैसे ही ग्लानि महसूस कर रही थी कि ये लोग क्या सोचेंगे ?कि ऐसे समय में मैं क्या कह रही हूँ ?किन्तु वो ये भी जानती थी ,किसी जगह जाने पर पता नहीं ,वहाँ क्या हालत हों ?सारा दिन भूखे पेट रहने से स्वयं हमें भी दिक्क़त आ सकती है। यदि ऐसा कुछ है ,उस ग़म को सहने की ताकत भी तो चाहिए। यही सोच उसने कह तो दिया किन्तु चंद्रिका का मुँह बन गया। वो मन ही मन सोच रही थी -चाची को ऐसे समय में भी खाने की पड़ी है।
तुमको खाने की पड़ी है ,तुम्हें चलना हो तो गाड़ी में बैठो !उसके पति ने झल्लाते हुए कहा।
तरुण जी ,जो सबसे पहले ही गाड़ी में ड्राइवर के पास वाली सीट पर बैठ चुके थे ,वो गाड़ी से उतरे और बोले -ये सही तो कह रही है। जाने में भी दो -तीन घंटे तो लग ही जायेंगे ,वहां भी पता नहीं ,क्या माहौल हो ?कहते हुए मयंक से बोले -जा दुकान से कुछ खाने -पीने के लिए ले आ। पैसे देते हुए बोले -तब तक तेरी चाची चाय बना लेगी। वो चाय बनाने अंदर चली गयीं ,गाड़ी से सभी बाहर आ गए।
पार्वती जी को भी खाने को दिया गया किन्तु उन्हें तो बेटी का इतना ग़म था ,उन्होंने खाने से इंकार कर दिया। तब तरुण जी को थोड़ी सख्ताई से काम लेना पड़ा और उन्हें डाँटा -खा क्यों नहीं लेती ?तुम्हारे इस तरह रोने से क्या उसकी परेशानी कम हो जाएँगी ? न खाने से तुम और बिमार पड़ जाओगी। वहाँ जाने पर ही ,सही बात की जानकारी होगी। चंद्रिका तू समझा अपनी माँ को और उसे कुछ खिलाकर लाना।
पिता के नाराज होने पर चंद्रिका उठी और अपनी मम्मी को भी नाश्ता दिया।
सब खा -पीकर फिर से बाहर आये ,अब तो मोहल्ले में भी सभी झाँककर देखने लगे ,एक -दो ने पूछ भी लिया -इतनी सुबह -सुबह सारा परिवार !कहाँ जा रहे हैं ?
नीलिमा के घर !
उन सभी के हालात देखकर ही लग रहा था ,कि कोई ख़ुशी की बात तो है नहीं ,बोले -क्या कुछ हुआ है ?
जी..... सही जानकारी तो नहीं ,वहीं जाकर पता चलेगा कहकर उन्होंने बात समाप्त की।
सभी गाड़ी में बैठे ,शांत थे ,सभी के चेहरों पर उदासी थी ,एक अनजाना भय था ,पता नहीं ,वहां क्या हो रहा होगा ?
आज से लगभग दस -बारह बरस पहले ही तो सभी ख़ुशी -ख़ुशी इसी तरह इस सड़क पर झूमते -गाते उमंग लिए ,नए -नए वस्त्रों में ,हर्षोउल्लास से जा रहे थे। सभी के चेहरों प्रसन्नता छाई थी और आज भी सभी साथ हैं किन्तु सबके चेहरे जैसे ठोस हो गए हैं। आने वाली परेशानी के लिए शायद अपने को तैयार कर रहे हैं। पार्वती जी को बीच -बीच में रुलाई फूट पड़ती किन्तु तुरंत ही अपने आँचल से अपने आंसू पोंछ लेतीं। उन्हें विश्वास था ,उनकी बेटी के साथ अनिष्ट हुआ है , रोते हुए उसी ने तो बताया था कि धीरेन्द्र..... सोचकर ही उनकी फिर से हिड़की बंध गयी। मुँह से आवाज बाहर न निकले यही सोचकर अपने पल्लू से अपने मुँह को दबा लिया। चंद्रिका भी शांत ही बैठी थी किन्तु उसने भी अपनी बहन का रोना सुना था ,उसका मन गहन दर्द में डूबा था किन्तु वो अपने को समझा रही थी ,रोकर भी क्या होगा ?मैं रोऊंगी तो, मम्मी को कौन संभालेगा ?किन्तु चाहकर भी वो अपने को संभाल नही पा रही थी। उसके इस अंतर्दवंद में उसका चेहरा जैसे ठोस हो गया था।
चंद्रिका की चाची और डिम्पी सभी शांत थे ,न ही उन्हें दुःख था ,न ही ख़ुशी। उन्होंने तो जैसे अपने को हर परिस्थिति के लिए तेेयार कर लिया था।उन्हें तो.... जो उनके साथ जा रही हैं ,उन्हें संभालना ही होगा।
जब गाड़ी ,नीलिमा के घर के बाहर रुकी ,तो वहां पहले से ही बहुत भीड़ थी। पुलिस भी दिखलाई पड़ रही थी।वहाँ के हालात देखते हुए ,मन ही मन सभी को घबराहट हुई और अंदर की ओर भागे। तरुण जी वहीँ खड़े होकर ,पुलिस से बात करने लगे। सभी महिलाएं अंदर की ओर भागीं। वहाँ नीलिमा रो रही थी ,उसके सास -ससुर और जेठ भी आये थे। नीलिमा को देखते ही, उसकी मम्मी रो उठी ,हाय...... मेरी बच्ची ये सब क्या हो गया ?नीलिमा का रुदन भी तेज हो उठा ,चंद्रिका और चाची भी रो रही थीं। एक साथ कई स्वर उभर रहे थे। अडोसी -पड़ोसी भी आ रहे थे ,जो भी सुनता आ जाता। भीड़ बढ़ती जा रही थी ,घर के अंदर से रोने की आवाजें आ रही थीं। चंद्रिका ने उसके बच्चों को संभाला। बेटे को तो कुछ मालूम ही नहीं क्या हो रहा है ?
बेटियाँ अपनी मौसी से पूछ रही थीं ,मम्मी क्यों रो रही हैं ?अभी तक उन्हें भी पता नहीं चला था कि उनके पापा नहीं रहे। दोनों बेटियों को खाना देकर व एक कमरे में बैठाकर ,चंद्रिका नीलिमा के समीप आई ,उसे देखते ही नीलिमा रो उठी -,दीदी !अब मेरा क्या होगा ?कहाँ जाऊंगी ?उनके बिना कैसे सब सम्भालूंगी ?उसके प्रश्न सुनते ही ,उसकी मम्मी फिर से तेजी से रोने लगीं।
सास -ससुर एक सोफे पर बैठकर ,धीरे -धीरे सुबक रहे थे। बाहर तरुण जी ने पुलिस के आदमियों से पूछा -क्या हुआ था ?
जी ,हमें तो किसी ने फोन पर बताया कि रेल की पटरी पर किसी की लाश टुकड़ों में पड़ी है। पहले तो पहचान नहीं हुई, किन्तु उसके कपड़ों से ,उसकी जेब में एक कागज़ था ,जिस पर यहाँ का पता लिखा था। उसके आधार पर ,हमने पता लगाया। आपकी बेटी से भी पूछा कि उसके पति कहाँ है ?तब उसने बताया कि वो कल शाम से अपने मम्मी -पापा से मिलने गए हुए हैं ,जो इसी शहर में रहते हैं किन्तु अभी तक आये नहीं आये। तब हमने उन्हें उनके कटे हिस्से तो नहीं दिखलाये किन्तु चेहरा दिखलाया ,उसे वो पहचान गयीं कि वो उसके पति का ही है।
तरुण जी बोले -वो वहाँ कैसे पहुंच गया ?उसके मम्मी -पापा तो उस जगह के विपरीत दिशा में रहते हैं।
हमने भी यही प्रश्न किया किन्तु आपकी बेटी और उनके माता -पिता ने यही कहा -हमें नहीं मालूम।
तरुण जी ने एक गहरी स्वांस ली और अंदर आकर एक कुर्सी पर बैठ गए। वे शांत बैठे हुए लोगों का आना -जाना देख रहे थे। महिलाओं में से रुदन की आवाज लगातार आ रही थी ,कभी कम ,कभी ज्यादा।
ये नीलिमा की ज़िंदगी किस मोड पर आ गयी? तीन छोटे छोटे बच्चों की माँ क्या करेगी, कहाँ जायेगी? आखिर धीरेंद्र ने ऐसा क्यों किया? जानने के लिए पढ़ते रहिये ऐसी भी ज़िंदगी