नीलिमा की बुआ का लड़का 'राघव 'नीलिमा से मिलने आता है और उससे उसके मन की बातें ,लेना चाह रहा था। क्या अब भी वो विवाह के लिए तैयार है ,या नहीं ?किन्तु इससे पहले की नीलिमा उसकी बातों को सुन या समझ पाती ,वो पहले ही उठकर चली गयी अपने बेटे को देखने ,राघव की बात उस तक ही सीमित रह गयी। शाम को सभी बाहर घूमने जाते हैं। अब तो नीलिमा को लगता है ,जब उसे किसी सहारे की आवश्यकता थी ,किसी का सहारा तलाशती ,तब वो नितांत अकेली खड़ी थी। जैसे -किसी मरुस्थल में अकेली ही यात्रा पर निकली हो ,उस मरुस्थल की धूप में वो, अकेली ही आगे बढ़ रही थी ,कभी कोई इक्का -दुक्का ऊँचा पेड़ उसे दिखा भी, किन्तु उससे न ही छाया मिली न ही फ़ल। अभी भी उसकी यात्रा जारी है।
किन्तु इस यात्रा में कोई न कोई यात्री टकरा ही जाता है ,जो ''हमसफ़र ''तो कतई नही बन सकता। उसकी यात्रा में कुछ देर के ''हमराही '' तो मिल जाते हैं ,वो भी अपने स्वार्थ के लिए ही आते हैं अब नीलिमा इन ''हमराहियों ''की फ़ितरत को समझने तो लगी है किन्तु उनसे बचकर निकलना चाहकर भी निकल नहीं पाती।
ऐसा ही एक ''हमराही ''उसे राघव के रूप में भी दिख रहा है ,देखते हैं ,कितने दिन या न जाने कितने समय तक साथ रहता है। इसका अपना भी कोई स्वार्थ है या फिर साथ निभाने ही आया है। नीलिमा को अब किसी के सहारे की आवश्यकता नहीं ,अब तो वो स्वयं एक मजबूत शिला बन चुकी है। राघव के साथ बच्चे घूमने गए और आइसक्रीम खाई। कल स्कूल भी जाना है ,चलो !अब घर चलते हैं , कहकर नीलिमा और बच्चे वापस हो लिए !
अब तो तुम बहुत स्मार्ट हो गयी हो।
होना ही पड़ता है ,समय के साथ अपने को बदलना भी पड़ता है ,धीरेन्द्र के हिसाब से अपने को बदला ,उसके हिसाब से ही क्या ? स्वयं में बदलाव ,तो मैं भी चाहती थी किन्तु ये सब...... अपने घर में बदलाव सम्भव नहीं था किन्तु यहाँ मुझे मौका और सहयोग दोनों मिले।अब तुम ही देखो !जैसी मैं पापा के घर में थी तो क्या आज मैं इस तरह अपने में सक्षम खड़ी हो पाती। बदलोगे नहीं तो ,''समय और परिस्थितियाँ तुम्हें बदल देंगी। ''
अब तो तुम्हारे अंदर आत्मविश्वास भी कूट -कूटकर भरा है। जब किसी कार्य में आदमी सफल हो जाता है तो ''आत्मविश्वास ''भी स्वतः ही बढ़ जाता है।
ऐसा मैंने क्या किया ? मेरी शिक्षा भी अपूर्ण ही रह गयी किन्तु मैंने अपनी परा स्नातक को पूरी कर ही ली।
ये क्या कम बड़ी बात है ?इतनी परेशानियों के बावजूद भी ,तुमने अपनी शिक्षा पूर्ण की ,और अब ज़िंदगी की परीक्षा दे रही हो। मेरा विश्वास है ,इसमें भी जरूर पास हो ही जाओगी। नीलिमा ने उसे नजरभर देखा ,इस तरह ,आजतक किसी ने भी उसका मनोबल नहीं बढ़ाया था ,नजर मिलते ही दोनों हंस दिए।
रात्रि को जब सब सो गए ,नीलिमा अपने कमरे में थी ,अपने बेटे अथर्व के साथ और बेटियां अपने कमरे में ,आज से पहले कोई भी उसके घर में ,रात्रि में रुका नहीं था ,दिन में आते थे ,चले जाते थे। किन्तु आज राघव एक रात्रि के लिए रुका था ,उसके लिए नीचे वाले हॉल में ही ,एक ''फ़ोल्डिंग पलंग ''बिछा दिया गया। उसने बहुत मना किया था ,वो ऐसे ही सोफे पर सो जायेगा किन्तु नीलिमा ने फिर भी उसके लिए वो पलंग बिछवा ही दिया। जब सम्पूर्ण दुनिया गहरी निद्रा में थी ,स्वयं नीलिमा और उसका परिवार भी ,तभी नीलिमा भी सुंदर सपनों में खोई थी ,वो देख रही थी ,वो किसी जंगल में है और भटक गयी है ,उस जंगल में अपनों की तलाश में है ,तभी कोई उसे बांध देता है ,वो उसके चंगुल से बचने के लिए तड़फड़ा रही है ,तभी नीलिमा को एहसास हुआ ,जैसे उसके बदन पर कुछ रेंग रहा है ,उसने देखा- एक आदमी उसके पैरों को चूम रहा है। ,उसे लगा जैसे वो धीरेन्द्र है ,वो उसके स्पर्श से प्रसन्न होती है ,मुस्कुराती है ,वो धीरे -धीरे आगे बढ़ रहा है।
नीलिमा को उसका स्पर्श मदहोश किये दे रहा था। उसका चेहरा उसके उसके हाथों में था ,नीलिमा आँखें मूंदे जैसे ही करवट बदलती है किसी की गर्म सांसें ,उसके गालों से टकराती हैं और उसके होंठों को किसी ने अपने होठों से बंद किया हुआ था ,उसकी अचानक से आँखें खुल गयीं ,नीलिमा ने देखा , किसी का बदन उसके ऊपर छाया हुआ था और वो उसके होंठों को लगातार चूस रहा था। तब उसे एहसास हुआ ,ये वो सपना नहीं देख रही ,वरन ये सब उसके साथ सच में हो रहा था ,वो कोई धीरेन्द्र नहीं वरन राघव था। स्वप्न से बाहर आते ही, उसकी मदहोशी दूर हुई और वो फुर्ती से उठ बैठी। वो सोच भी नहीं सकती थी ,कि राघव भी ऐसा ही कुछ करेगा। उसके बदन में अभी भी वो मदहोश करने वाली तरंगे नर्तन कर रही थीं ,उसने फुर्ती से ,खड़े होकर लाइट जलाई और राघव से बोली -तुम यहाँ.....
राघव का बदन जैसे तप रहा था ,वो अपने आप में नहीं था ,वो बोला -तुम मेरी हो सकती थीं किन्तु हो नहीं पाई ,किन्तु अब तो कोई बंधन नहीं ,हम अब भी एक -दूजे के हो सकते हैं ,किसी का कोई बंधन नहीं न ही यहाँ मामाजी आ सकते हैं और न ही तुम्हारे ससुराल से कोई ,धीरेन्द्र तो अब रहा नहीं ,कब तक इसी तरह तरसती रहोगी ?और मुझे भी तरसाती रहोगी। आओ ! हम एक हो जाते हैं।
नीलिमा का बदन भी ,उसके छूने से कसमसाकर रह गया था ,अभी इतनी बूढ़ी भी नहीं हुई थी कि कोई इस तरह उसके तन को छुए और वो झुलसे नहीं ,इस अग्नि में ,वो भी झुलस ही रही थी।
ऐसे में यदि वो इंकार करती है ,हो सकता है ,वो जबरदस्ती पर आ जाये ,हो सकता है ,बच्चों की नींद खुल जाये। नीलिमा ने अपनी आँखें मूंदकर एक गहरी श्वांस ली और बोली -चलो ! नीचे चलते हैं। यहाँ [अथर्व की ओर इशारा करते हुए ] ये उठ सकता है। कहते हुए ,नीचे की तरफ बढ़ चली।
क्या नीलिमा ने परिस्थितियों से समझौता कर लिया? किसी न किसी को तो उसे अपनाना ही होगा। वरना लालच भरी नजरें उसका पीछा करती रहेंगी। आखिर कब तक उन नजरों से अपने को बचा सकेगी?