आज 15 अगस्त है, स्वतंत्रता दिवस.. स्कूल में सर्वप्रथम ध्वजारोहण किया गया फ़िर उसके बाद राष्ट्रगान हुआ l स्कूल में आये अतिथि के सम्मान के बाद बच्चों के कुछ प्रोग्राम हुए.. फ़िर उसके बाद प्रिंसिपल का उदबोधन हुआ और फ़िर सभी टीचर को बोलने के लिए बुलाया गया... तो सभी टीचर्स लाइन से यन्त्रचालित गए और स्वतंत्रता दिवस की शुभ कामना व्यक्त करके नीचे आ गये l
उसके बाद बारी आई सुमिता की और जैसे ही उसे बुलाया गया तो सभी बच्चों ने उसके नाम लेते ही तालियाँ बजाना चालू कर दिया और हो भी ना क्यों .. क्योंकि सुमिता सभी बच्चों की सबसे प्रिय टीचर जो थी l
उसका हँसमुख, बिन्दास, खुला दोस्ताना व्यवहार और खुली आजाद सोच..पढ़ाने के नित नए फ़ार्मूले हमेशा से ही बच्चों को लुभाते थे l वह स्कूल के सभी प्रोग्राम की जान थी और बढ़ चढ़कर हिस्सा भी लेती थी l
सुमिता ने बोलना चालू किया तो सभी उसको मंत्रमुग्ध होकर सुन रहे थे... उसकी मीठी आवाज और उस पर ओजयुक्त अंदाज ...और विषय था "आज के संदर्भ में स्त्री की स्वतंत्रता" ..जब वह अपना वक्तव्य खत्म करके नीचे उतरी तो बहुत देर तक तालियाँ बजती रही l
प्रोग्राम के समापन के बाद सभी बच्चों के जाने के बाद स्कूल की ओर से सारे स्टाफ़ के लिए स्वल्पाहार रखा गया था...तो सभी टीचर्स साथ बैठकर मजाक मस्ती कर रहे थे
सभी मिलकर सुमिता की तारीफ़ कर रहे थे कि यार इतना अच्छा बिना तैयारी के कैसे बोल लेती है..हम लोगों की तो स्टेज पर जाते ही सिट्टी पिट्टी गुम हो जाती है l
सुमिता बस मुस्करा दी और बोली.. तैयारी क्या करना.. जो मन में होता है बोल देती हूँ l
सभी मिलकर हँसी मजाक करते रहे और बातों ही बातों में सभी ने मिलकर भोजपुर घूमने का प्रोग्राम बना लिया क्योंकि दूसरे दिन ही संडे पड़ रहा था तो सभी लोग कहने लगे कि यार कहाँ.. बार बार मौका मिलता है, सभी चलते हैं ... मजा आयेगा... रोज ही तो घर बाहर के सब काम सम्भालते हैं, थोड़ी आउटिंग हो जाएगी... एक दिन की आजादी तो हम ले ही सकते हैं l... क्यों सही कहा ना सुमिता आ..हाँ.. सुमिता थोड़ा चौक गई.. जैसे कही खोई हुई थी, अपनी तृंदा से बाहर आ गई l
रीमा - एक बात तो है, जब तू बोलती है ना ..तो यार कोई भी इन्सपायर हो जाएगा l वो वाली लाईन तो मस्त थी पता मैने उसकी मोबाइल में रिकॉर्डिग भी की है....देखो
"..पुरुष को स्त्री का स्वयमेव स्वयंशंभु किसने बना दिया है.. किसी स्त्री के लिए सौभाग्य चिन्ह धारण करने की अनिवार्यता क्यों है.. क्या पुरुष को प्राप्त करना ही उसका सौभाग्य है.. यदि दोनों एक दूसरे के पूरक कहे जाते हैं तो क्या पुरुष को स्त्री को प्राप्त करना कोई सौभाग्य नहीं है.. यदि हैं तो उसे भी सौभाग्य चिन्ह की अनिवार्यता दी जानी चाहिए... एक तरफ हम स्त्री स्वतंत्रता की बड़ी बड़ी बातें करते हैं l सौभाग्य चिन्ह मुझे सौभाग्य से ज्यादा ये गुलामी के चिन्ह ज्यादा लगते हैं l
माँग में सिन्दूर..तुम्हारी सोच और फ़ैसलो पर मेरा नियंत्रण माथे पर बिन्दी.. तुम्हारी स्वाभिमान और पहचान पर मेरा नियंत्रण,...गले में मंगलसूत्र... तुम्हारे जीवन की जरूरतों और पसंद पर मेरा नियंत्रण,..हाथों में चूडियाँ....तुम्हारे कामों पर नियंत्रण कि तुम क्या करोगी क्या नहीं,.. पैरो में पायल बिछिया.. तुम कब कहाँ जाओगी उस पर नियंत्रण, मतलब कि पुरुष की मर्जी के बिना कुछ भी अलॉऊड नहीं.. आजादी कहाँ है ?और यदि कहा जाता है कि स्त्री प्रेम में पुरुष की सुरक्षा के लिए धारण करती हैं तो उसमें अनिवार्यता क्यों है फ़िर तो यह एक स्वेच्छा का विषय है..और प्रेम से जोड़े तो क्या पुरुष को स्त्री से कोई प्रेम नहीं कि उसकी सुरक्षा के लिए कुछ बनाया ही नहीं गया l
यदि आज आजादी की बात कर रहे हैं तो देश के युवा जीवन की जीवनदायिनी और सम्पूर्ण परिवार और राष्ट्र का बोझ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अपने कंधे पर लाद ढोनेवाली स्त्री की दशा पर उसकी आजादी पर ध्यान तो देना होगा l"
सच में यार क्या बोलती हो..ये जाम सुमिता के नाम सभी तालियाँ बजाते हुए.. चाय के कप आपस में टकराते हुए कहकर हँसने लगे l सुमिता मुस्कराके रह गयी l
तभी विनीता आई और बोली. ..सुनो सुनो मैने सर से बात करली है.. सर कल गाड़ी भेजने के लिए मान गए हैं.. तो
मतलब कि जाने का बंदोबस्त सर की तरफ़ से हो गया है.. बाकी रहा खाने पीने का तो सभी अपने घर से एक एक डिश बनाकर लायेगे.. अलग ही मजा होगा.. राइट.. सभी एक साथ बोले.. l
तभी सुमिता बोली.. यार! मेरा अभी कुछ पक्का नहीं है.. मैं घर पहुँचकर बताती हूँ.. क्योंकि संडे है तो इनका कोई प्लान ना हो.. नहीं तो गड़बड़ हो जाएगी l
क्या यार! तू ना पूरा प्रोग्राम खराब मत कर.. एक दिन के लिए अपने हसबैन्ड को समझा देना l और थोड़ा अपनी आजादी का भाषण अपने "उन्हें" भी सुना देना..और सभी ठहाके लगाकर हँसने लगे l
अरे! मैं मना कहाँ कर रही हूँ.. बस यही तो कह रही हूँ कि घर जाके बताऊगी l...उसकी बात पूरी होने से पहले ही बीच में काटकर विनीता बोली.. हाँ हाँ और जैसे पहले भी कई बार हो चुका है.. घर में बोल देना कम्पल्सरी हैं अटेन्ड करना.. समझी.. और कुछ नहीं सुनुँगी l
सुमिता मन मसोसकर रह गयी.. वह भी जानती थी कि घर में क्या होगा..ढेर सारे प्रश्न और साथ में याद दिलायी जाती जिम्मेदारियाँँ l...सबको क्या बताती कि..आजादी क्या होती है ???आजादी की बातें और मतलब ...वही समझ सकता है जो गुलाम हो... गुलाम ही तो थी.. जहाँ उसकी मर्जी का कोई मतलब ही नहीं था l
कहने को अपनी मर्जी चला लेती... पर बदले में क्या मिलता ... बहुत सी तोहमतें और पुरुषदम्भ से भरी तेज आवाजें.. और घर की शान्ति भंग करने का इल्ज़ाम... और साथ ही मिलती जिम्मेदारी सिखाते हुए एक सलाह कि क्या जरुरी था बाहर जाना.. पहले घर की सुख शान्ति जरुरी है कि घूमना!!
उस छोटी सी आजादी की कीमत होता..बहुत से लोगों के सामने मेरा तार तार होता स्वाभिमान और मेरा सम्मान !!!!
और खड़ी होती हूँ सिर झुकाए, सुनती मैं.. बिल्कुल "अकेली"
उससे तो अच्छी है ना एक "ना"........????
क्योंकि जिम्मेदारी तो सिर्फ औरत की होती है आदमी की नहीं.... क्योंकि जवाब तो सिर्फ़ औरत को देना होता हैं आदमी को नहीं!! ..सुख शान्ति क्या सिर्फ़ औरत को चाहिए होती हैं??.. ये सुख शान्ति का प्रश्न कभी पुरुष के सामने क्यों नहीं पेश किया जाता l
बस उस "सुख शान्ति" की कीमत चुकाते चुकाते अंदर कुछ थोड़ा थोड़ा करके मरता जरुर जाता है l और कुछ नहीं!!! सुख शान्ति तो बनी रहती है.. पर रिश्ता मर जाता है l
आपको चाहिए ऐसी आजादी????????? बताइएगा जरुर ?
✍️शालिनी गुप्ता प्रेमकमल🌸
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