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ग़ज़ल-ऐसे भी होते है लोग-

28 जुलाई 2022

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*#ग़ज़ल-ऐसे भी होते है लोग-*

खूब मेहनतकश जो थककर चूर जब होते हैं लोग।
चिलचिलाती धूप में पत्थर पे भी सोते हैं लोग।।

इंसान है इंसानियत से भी तो रहना सीख लें।
हैवान बनके नफ़रतों के बीज क्यों होते हैं लोग।।

लौट करके वक़्त गुज़रा फिर कभी आता नहीं।
जो कद्र करते ही नहीं वो बाद में रोते हैं लोग।।

बढ़ पाए न आगे कोई करते है वो ऐसे जतन।
दूसरों की टांग खींचे ऐसे भी होते हैं लोग।।

भारत में हर इक धर्म ही मोती सा है 'राना'।
बन जायेगी माला भी इक मोती पिरोते हैं लोग।।
***


*© #राजीव_नामदेव "#राना_लिधौरी",#टीकमगढ़*
           संपादक-"#आकांक्षा" हिंदी पत्रिका
संपादक- 'अनुश्रुति' बुंदेली पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email - ranalidhori@gmail.com
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रचनाएँ
राना लिधौरी की ग़ज़लें
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राजीव नामदेव राना लिधौरी टीकमगढ़ (मप्र) की बेहतरीन ग़ज़लें पढ़िएगा
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आपके प्यार की खुशबू है मेरे सीने में...

18 नवम्बर 2021
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<p>ग़ज़ल- खुश्बू है मेरे सीने में</p> <p><br></p> <p>रहें मंदिर में या गिरजा में, के मदीने में।</p>

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भा गया कोई

2 दिसम्बर 2021
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<p>*ग़ज़ल-भा गया कोई*</p> <p><br></p> <p>मेरे दिल को जो भा गया कोई।</p> <p>आग ऐसी लगा गया कोई।।</p>

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हिंदी ग़ज़ल- चर्चित हो गये (राना लिधौरी)

30 दिसम्बर 2021
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<p>*हिन्दी ग़ज़ल-चर्चित हो गये*</p> <p><br></p> <p>नव काव्य सृजन करके थोड़ा सा चर्चित हो गये।</p> <p

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ग़ज़ल- ये अलग बात है

27 जनवरी 2022
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ग़ज़ल- ये अलग बात है* वो ख़फ़ा मुझसे है ये अलग बात है। ज़िन्दगी की ये लेकिन कडी रात है।। जाने वाले तुझे कैसे समझाये हम। कितनी क़ातिल अमावस की रात है।। जाने किस बात पर आज तक जाने क्यों।

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ग़ज़ल- ये अलग बात है

17 फरवरी 2022
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ग़ज़ल- ये अलग बात है* वो ख़फ़ा मुझसे है ये अलग बात है। ज़िन्दगी की ये लेकिन कडी रात है।। जाने वाले तुझे कैसे समझाये हम। कितनी क़ातिल अमावस की रात है।। जाने किस बात पर आज तक जाने क्यों। नापसंद उनको

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ग़ज़ल-जज़्बात

17 फरवरी 2022
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**ग़ज़ल-जज़्बात बेच-बेच के*जज़्बात बेच-बेच के खाने लगे हैं लोग।शादी के ज़रिए पैसा कमाने लगे है लोग।।आदर्श विवाह सिर्फ दिखावा है दोस्तों।चैक भी एडवांस में मंगाने लगे है लोग।।कैसा ये इंक़लाब है कैसा निज

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ग़ज़ल-रुला देते है

19 मई 2022
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*ग़ज़ल-रुला देते हैं*इस तरह लोग मोहब्बत में दगा देते हैं।दिल को तड़पाते है और रुला देते हैं।।वोट की खातिर गधों को भी मना लेते हैं।जीत के बाद ही जनता को भुला देते हैं।।वो तो हैवां हैं जो इंसां की मदद क

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ग़ज़ल-ऐसे भी होते है लोग-

28 जुलाई 2022
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*#ग़ज़ल-ऐसे भी होते है लोग-*खूब मेहनतकश जो थककर चूर जब होते हैं लोग।चिलचिलाती धूप में पत्थर पे भी सोते हैं लोग।।इंसान है इंसानियत से भी तो रहना सीख लें।हैवान बनके नफ़रतों के बीज क्यों होते हैं लोग।।लौ

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गजल- राना सवाल रखता है

4 अगस्त 2022
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#जय_बुंदेली_साहित्य_समूह #टीकमगढ़ #ग़ज़ल- राना सवाल रखता है-* उसी से रिश्ता बनाते जो माल रखता है। जहां में कौन किसी का ख्याल रखता है।। मतदाता भी लाचार है और लालची। चुनाव में तो वो, वादों का जाल रखता ह

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ग़ज़ल- मयखाना लिये बैठा हूं

15 सितम्बर 2022
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#ग़ज़ल- #मयखाना लिये बैठा हूँमैं अपने हाथ में पैमाना लिये बैठा हूँ।सुर्ख गुलाब का संग नज़राना लिये बैठा हूँ।।कैसे बचोगे तुम भी अब तीरे नज़र से।मैं नज़रों में ही मयखाना लिये बैठा हूँ।।सोचा था कि प्यार

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