ग़ज़ल- खुश्बू है मेरे सीने में
रहें मंदिर में या गिरजा में, के मदीने में।
आपके प्यार की खुशबू है मेरे सीने में।।
यूं तो सब लोग ही जी लेते है जहां में मगर।
काम जो औरो के आये है मज़ा जीने में।।
खूब मेहनत करें हो जायेगी रोटी की जुगाड़।
निचोड़े वो लहू अपना जब पसीने में।।
इंसां की शक्ल सूरत करती है बया़ सब कुछ।
क्यों ढूंढते हो उसको पत्थर के नगीने में।।
'राना' इन होंसले को तुम कम न होने देना।
चढ़ जाओगे तुम फिर तो सफलताओं के ज़ीने में।।
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*© राजीव नामदेव "राना लिधौरी", टीकमगढ़*
संपादक "आकांक्षा" पत्रिका
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