ग़ज़ल- ये अलग बात है*
वो ख़फ़ा मुझसे है ये अलग बात है।
ज़िन्दगी की ये लेकिन कडी रात है।।
जाने वाले तुझे कैसे समझाये हम।
कितनी क़ातिल अमावस की रात है।।
जाने किस बात पर आज तक जाने क्यों।
नापसंद उनको हमसे मुलाक़ात है।।
रात दिन 'राना' हम सोचते है यही।
जिसपे रूठे है वो कौन सी बात है।।
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*© राजीव नामदेव "राना लिधौरी", टीकमगढ़*
संपादक-"आकांक्षा" हिंदी पत्रिका
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