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अकेले गुजरे पल--दो शब्द

17 सितम्बर 2021

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अकेले गुजरे पल--दो शब्द 
                   राजीव रावत

मैं
आज भी अकेले
नदी के किनारे पर तुम्हारे इंतजार में
रोज रेत के महल बनाती हूं--
अपने उंगलियों से
सहला कर आहिस्ता आहिस्ता
तुम्हारे कमरे का बिस्तर बिछाती हूं--

मोटे मोटे कंकड़ो परे कर
नर्म रेत का तकिया बनाती हूं-
और
हवा के झोकों या नदी की तेज लहर आने से पहले उसमें
स्वप्नों के नये नये दरख्त उगाती हूं--

मैं
जानती हूं कि
पल भर में यह सब बिखर जायेगा-
लेकिन मेरी जिन्दगी का
वह एक पल तो  कम से कम
तुम्हारे अहसासों से भर कर छलक जायेगा-

तुम्हारी
धड़कनों की आवाजें
सुकून से सोने कहां देती हैं--
शरीर की वह गंध और तुम्हारे स्पर्श का स्पंदन और तुम्हारी परिछायी
तुम्हारी गुजरी राह में आज भी दिखाई देती है--

सच कहूं
यह अकेलेपन की वेदना
हर जगह उदास निगाहों से तुम्हें देखना
बालों में तुम्हारी उंगलियों की संवेदना
अधरों का अधरों पर प्यार की दास्ताँ गोदना
सोते सोते
अचानक चौंक कर उठ जाती हूं-
एक बात पूंछू
वहां खाली बिस्तर, सूने तकिये के लिहाफों
और दिल के किसी कोने से
अकेलेपन में क्या कभी मैं भी याद आती हूं--
                               राजीव रावत

आलोक सिन्हा

आलोक सिन्हा

बहुत बहुत सुन्दर रचना

19 सितम्बर 2021

संगीता पाठक

संगीता पाठक

बहुत ही सुंदर कविता 👌👌👌👌

19 सितम्बर 2021

nidhi sharma

nidhi sharma

बेहतरीन रचना

17 सितम्बर 2021

Motivational Stories by Jaya Sharma ‘प्रियंवदा’

Motivational Stories by Jaya Sharma ‘प्रियंवदा’

सादर नमस्कार बहुत सार्थक और बेहतरीन लेखन शैली है आपकी

17 सितम्बर 2021

राजीव

राजीव

17 सितम्बर 2021

आपका हार्दिक आभार

Poonam kaparwan

Poonam kaparwan

बहुत मनभावन लेखनी है आपकी ।उत्कृष्ट ।🙏 🙏

17 सितम्बर 2021

राजीव

राजीव

17 सितम्बर 2021

धन्यवाद, आपका

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