ममता का वात्सल्य
"पापा...! जल्दी उठो ना, अंकल जी के घर से किसी जानवर के रोने की आवाज आ रही है, लगता है कोई जानवर कही फस गया है । चलो, न उसे बाहर निकाले" झकझोर कर मुझे नींद से जगाने का प्रयास करते हुवे मुन्नी ने कहा ।
गैलरी में जाने पर पाया कि पड़ैस के गुप्ता जी के गैरेज से बिल्ली के बच्चे की रोने की आवाज आ रही है ।
"बिल्ली इसके लिए खाना लाने गयी है, थोड़ी देर में लौट आयेगी तब इसका रोना बन्द हो जायेगा" मुन्नी के आग्रह को टालते हुए मैं दूध लेने निकल पड़ा पर मुन्नी के कान गुप्ता जी के गैरेज से हटे नहीं।
शरद ऋतु में घड़ी की सुईयां सूर्यदेव के उदय होते ही सरपट दौड़ने लगती है । प्रात: भ्रमण के पश्चात गर्मागर्म चाय की चुस्कियों के साथ मैं धूप का आनन्द ले रहा था कि चिन्तातुर मुन्नी बोली,"पापा बिल्ली अभी तक नहीं लौटी, छोटा बिल्ला कब से चिल्ला रहा है, बेचारा भूख से मर जायेगा । अब तो उसे अपने घर ले आओ ना", मुन्नी का कहना सही था ।
एक शादी समारोह में शामिल होने के सिलसिले में गुप्ता जी को अपने पुश्तैनी गांव जाना हुआ । घर की चाबियां हमें सुपुर्द करके गये थे । गैराज खोला तो दखा, कोने में पड़ी पुरानी मेज के नीचे बिल्ली का बच्चा पड़ा है । बिल्ली कहीं नजर नहीं आई । बच्चा बेहद छोटा था और चलने के अपने प्रत्येक प्रयास के साथ ही गिर पड़ता । शायदकल रात ही उसने निष्ठुर दुनिया में कदम रखा था। मां के वियोग में बिलख रहा था वह ।
बचपन में दादी मां से सुना था कि अगर बिल्ली के बच्चे को आदमी छू ले तो बिल्ली अपने बच्चे कोनहीं अपनाती, मार देती है उसे । अनिष्ट की आशंका बिल्ले को छुने से रोक रही थीं पर उसका कातर विलाप एवम् मुन्नी का अनुनय-विनय आगे बढ़ने को विवश कर रहा था । अब तक बिल्ली के न लौटने से शंकित मैं, बिलौटे को घर ले आया ।
कबाड़ी को देने हेतु संग्रहित प्लास्टिक के ढ़ेर से मुन्नी की पुरानी दूध पीने की बोतल ढूढी गयी और नन्हे बिल्ले को दूध पिलाने का उद्यम शुरु हुआ । बिल्ले की एक आंख अभी तक खुली नहीं थीं । मुख छोटा सा था और बोतल की निप्पल थी बड़ी, एक बूंद मुंह के अन्दर तो दूसरी बाहर । बड़ी मशक्कत के बाद बिल्ले के पेट में कुछ घूंट दूध पहु्ंचा । भूख के शांत हो जाने पर उसका विलाप थोड़ा मंद हुआ, पर थमा नहीं ।
"दूध तो हमने पिला दिया, अब क्यों रो रहा है...ॽ
"बेटा, इसके तन की भूख तो मिट गयी पर मन अतृप्त है, यह मां के वात्सल्य के लिए तड़प रहा है..."
"मां का वात्सल्य...क्या होता है...ॽ"
वात्सल्य का भावार्थ बालमन को समझा सकू ऐसा कोई शब्द अपने शब्दकोश में न पाकर मैं किंकर्तव्यविमूढ़ हो गया । अपनी निरुत्तरता से पीछा छुडाते हुवे मैं बोला- "मान लो तुम्हारी मम्मी कहीं गुम हो जाये तो....,तुम्हें कैसा लगेगा...."
मैं अपना वाक्य पूरा भी नहीं कर पाया था कि मुन्नी दौड़ कर मुझ से लिपट गयी और रुआंसी होकर चिल्ला पड़ी कि "नहीं.....ऐसा मत बोलो ।"
मुन्नी की चीख सुनकर पत्नी दौड़ी चली आई । चुप रहने का इशारा करते हुवे मैंने, मुन्नी को उसकी गोद में दे दिया ।
आफिस के लिए रवाना होते समय ख्याल आया कि बिल्ले के रोने की आवाज नहीं आ रहीं, कहां चला गया वह...ॽ आशंकित हो पीछे वाली गैलरी की तरफ दौड़ा तो देखा कि बिल्ले को अपनी गोद में लिये मुन्नी, होले-होले सहला रही है उसे और बिल्ला अपना सिर उसके घुटनों पर टिकायें मीठी नींद सो रहा है ।
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माणक चन्द सुथार, बीकानेर (राज)
चलभाष: 8005927495