shabd-logo

अंधेरों से दो दो हाथ करना पड़ता हैं

3 दिसम्बर 2021

25 बार देखा गया 25
हर बार थकन को रूह से बाहर निकलना पड़ता हैं,
खुद को खुद से ही संभलना पड़ता हैं।
हम आए तो थे यहां उजाला बनकर
फिर भी अंधेरों से दो दो हाथ करना पड़ता हैं।

दुश्मनी खानदानी हों या फिर चाहत नया हों उसे दिल से निभाना पड़ता हैं,
जानने वाले तो सब जानते हैं फिर भी हर घाव को छुपाना पड़ता हैं।
और ऐ मेरे खुदा हमने किसी का कुछ बिगाड़ा नहीं है
फिर भी शिकायतों का हर ताज सर उठाना पड़ता हैं।

मुमकिन नहीं यहां आंखे चार करना क्योंकि बिछुड़ने से डरना पड़ता हैं,
ये दुनिया हमको जला देगी मुर्दा समझकर फिर हमको भी जलना पड़ता।
और खामोश हमारी जलन पर तुम इतना मत इतराओ
उसके आगे सभी को सर झुकाना पड़ता हैं।

Rakeah की अन्य किताबें

किताब पढ़िए