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अंजाम- ए- मोहब्बत

14 जनवरी 2024

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कैसी ये मनहूस घड़ी थी,
पटरी पर एक लाश पड़ी थी।
दो हिस्सों में बंटी हुई थी,
किसी ट्रैन से कटी हुई थी।।

फोन कान से लगा हुआ था,
दिल से उसके दगा हुआ था।
प्यार किसी से करता था वो,
किसी कली पर मरता था वो।।

धोखा खाकर टूट गया,
उसका अपना रुठ गया।
प्रेम दीवाना छला गया,
जान गवां कर चला गया।।

रिश्ते नाते तोड़ गया,
बस दर्द की आहें छोड़ गया।
प्यार मोह्हबत के चक्कर मे,
दुनियां से मुंह मोड़ गया।।

एक सबक वो सिखा गया,
दुनियां को ये दिखा गया।
प्रेम माँगता है कुर्बानी,
पन्नो में ये लिखा गया।।

एक अंधी अनजान मोहब्बत,
पाकर के वो फूल गया।
जिसने जनम दिया और पाला,
उनको पल भर में भूल गया।।

क्या ऐसी मजबूरी थी,
क्या चाहत कोई अधूरी थी।
क्या जीने की कोई चाह न थी,
क्या देनी जान जरूरी थी।।

अरे अभागे, तेरी मौत पर,
आंसू कौन बहायेगा।
होगा ये अंजाम अगर जो,
मां बाप को तू ठुकरायेगा।।

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रचनाएँ
काव्य - कुसुम
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सामाजिक जीवन में तमाम अनुभूतियों को व्यक्त करने के कई माध्यम होते हैं। कुछ अनुभूतियां कविता के रूप में स्फुटित होकर हमारे आपके बीच बहुत कुछ कह जाती हैं। ऐसी ही कुछ अनुभूतियों को आप सब के बीच रखने का एक छोटा सा प्रयास है।
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वन्दना

14 जनवरी 2024
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रवि की किरणें तम हरण करें।नवज्योति प्रकाशित वरण करें।।अविच्छिन धरा ये पावन हो।उषा की वेला मनभावन हो।।रत रहें प्रगति के पथ पर हम,निज कर्मशील अनुरागी हो।।सत्यनिष्ठ अरु धर्मनिष्ठ सतकर्मो के सहभागी हों।।प

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वो हालातों से टूट गयी

14 जनवरी 2024
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जो भीख मांगती सड़कों पर,ये कैसी उसकी करनी थी।क्या कहूँ भला उस ममता को,जो दो बेटों की जननी थी।।अपनी औलाद ने छोड़ दिया,दर - दर की ठोकर खाने को।लाठी ने दामन थाम लिया,इस पेट की भूख मिटाने को।।जिनकी ममता ने

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अंजाम- ए- मोहब्बत

14 जनवरी 2024
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कैसी ये मनहूस घड़ी थी,पटरी पर एक लाश पड़ी थी।दो हिस्सों में बंटी हुई थी,किसी ट्रैन से कटी हुई थी।।फोन कान से लगा हुआ था,दिल से उसके दगा हुआ था।प्यार किसी से करता था वो,किसी कली पर मरता था वो।।धोखा खाकर

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फिर से कोई दिल को तोड़ेगा.....

31 जनवरी 2024
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कुछ ख्वाब अधूरे टूटेंगे।कुछ सपने खुशियां लूटेंगे।कुछ साथी राह में छूटेंगे।कुछ अपने भी जब रूठेंगे।अफसोस मगर तो होगा जब,फिर से कोई दिल को तोड़ेगा।।......(1)यादों के जख्म हरे होंगे।नयनों में अश्रु भरे हों

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