14 जनवरी 2024
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कहानीकार, लेखकD
रवि की किरणें तम हरण करें।नवज्योति प्रकाशित वरण करें।।अविच्छिन धरा ये पावन हो।उषा की वेला मनभावन हो।।रत रहें प्रगति के पथ पर हम,निज कर्मशील अनुरागी हो।।सत्यनिष्ठ अरु धर्मनिष्ठ सतकर्मो के सहभागी हों।।प
जो भीख मांगती सड़कों पर,ये कैसी उसकी करनी थी।क्या कहूँ भला उस ममता को,जो दो बेटों की जननी थी।।अपनी औलाद ने छोड़ दिया,दर - दर की ठोकर खाने को।लाठी ने दामन थाम लिया,इस पेट की भूख मिटाने को।।जिनकी ममता ने
कैसी ये मनहूस घड़ी थी,पटरी पर एक लाश पड़ी थी।दो हिस्सों में बंटी हुई थी,किसी ट्रैन से कटी हुई थी।।फोन कान से लगा हुआ था,दिल से उसके दगा हुआ था।प्यार किसी से करता था वो,किसी कली पर मरता था वो।।धोखा खाकर
कुछ ख्वाब अधूरे टूटेंगे।कुछ सपने खुशियां लूटेंगे।कुछ साथी राह में छूटेंगे।कुछ अपने भी जब रूठेंगे।अफसोस मगर तो होगा जब,फिर से कोई दिल को तोड़ेगा।।......(1)यादों के जख्म हरे होंगे।नयनों में अश्रु भरे हों