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वो हालातों से टूट गयी

14 जनवरी 2024

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जो भीख मांगती सड़कों पर,
ये कैसी उसकी करनी थी।
क्या कहूँ भला उस ममता को,
जो दो बेटों की जननी थी।।

अपनी औलाद ने छोड़ दिया,
दर - दर की ठोकर खाने को।
लाठी ने दामन थाम लिया,
इस पेट की भूख मिटाने को।।

जिनकी ममता ने जीवन में,
पैसे का मोल नही जाना।
एक -एक पैसे को मोहताज है वो,
जब अपना खून हुआ बेगाना।।

खुद भूखी रहकर जिस मां ने,
संतान को पाला पोसा था।
कहती थी मेरे बुढ़ापे का,
बस यही तो एक भरोसा था।।

दो चार रुपए की खातिर जो,
गैरों के आगे हाथ पसारे थी।
दुर्बल शरीर मजबूर पेट,
की खातिर लज्जा बारे थी।

जीवन के अंतिम पड़ाव पर,
उसकी खुशियां रूठ गयी,
ममता की मूरत बिखर गई,
वो हालातों से टूट गयी।।

जब जन्मदायिनी इस हाल में हो,
तो फूट कलेजा रोता है।
संतानहीन होने का दुख,
इस दुख से तो कम होता है।।

न शर्म रही न लोक लाज,
इन कलियुग की औलादों में।
मां - बाप ठोकरें खाते हैं,
ममता रूपी अवसादों में।।

भीख मांगती मां को देखे,
लानत है पुत्र कहाने में।
यह दृश्य देखने से पहले,
मरना ही सही जमाने में।।

              
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रचनाएँ
काव्य - कुसुम
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सामाजिक जीवन में तमाम अनुभूतियों को व्यक्त करने के कई माध्यम होते हैं। कुछ अनुभूतियां कविता के रूप में स्फुटित होकर हमारे आपके बीच बहुत कुछ कह जाती हैं। ऐसी ही कुछ अनुभूतियों को आप सब के बीच रखने का एक छोटा सा प्रयास है।
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वन्दना

14 जनवरी 2024
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रवि की किरणें तम हरण करें।नवज्योति प्रकाशित वरण करें।।अविच्छिन धरा ये पावन हो।उषा की वेला मनभावन हो।।रत रहें प्रगति के पथ पर हम,निज कर्मशील अनुरागी हो।।सत्यनिष्ठ अरु धर्मनिष्ठ सतकर्मो के सहभागी हों।।प

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अंजाम- ए- मोहब्बत

14 जनवरी 2024
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कैसी ये मनहूस घड़ी थी,पटरी पर एक लाश पड़ी थी।दो हिस्सों में बंटी हुई थी,किसी ट्रैन से कटी हुई थी।।फोन कान से लगा हुआ था,दिल से उसके दगा हुआ था।प्यार किसी से करता था वो,किसी कली पर मरता था वो।।धोखा खाकर

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फिर से कोई दिल को तोड़ेगा.....

31 जनवरी 2024
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कुछ ख्वाब अधूरे टूटेंगे।कुछ सपने खुशियां लूटेंगे।कुछ साथी राह में छूटेंगे।कुछ अपने भी जब रूठेंगे।अफसोस मगर तो होगा जब,फिर से कोई दिल को तोड़ेगा।।......(1)यादों के जख्म हरे होंगे।नयनों में अश्रु भरे हों

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