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जय त्रिवेदी 'अखिल' के बारे में

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जय त्रिवेदी 'अखिल' की पुस्तकें

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इस लघुकथा एक निरीह पक्षी के प्रति मानवीय संवेदना को व्यक्त करती है।

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आलेख

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एक अच्छा परिवार एक अच्छे समाज की नींव रखता है। अच्छा समाज समूचे देश का प्रतिबिंब होता है। हमारे संस्कार और सामाजिक वातावरण से ही देश का व्यक्तित्व विश्व पटल पर दैदीप्यमान होता है।

2 पाठक
1 रचनाएँ

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आलेख

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एक अच्छा परिवार एक अच्छे समाज की नींव रखता है। अच्छा समाज समूचे देश का प्रतिबिंब होता है। हमारे संस्कार और सामाजिक वातावरण से ही देश का व्यक्तित्व विश्व पटल पर दैदीप्यमान होता है।

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काव्य - कुसुम

काव्य - कुसुम

सामाजिक जीवन में तमाम अनुभूतियों को व्यक्त करने के कई माध्यम होते हैं। कुछ अनुभूतियां कविता के रूप में स्फुटित होकर हमारे आपके बीच बहुत कुछ कह जाती हैं। ऐसी ही कुछ अनुभूतियों को आप सब के बीच रखने का एक छोटा सा प्रयास है।

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काव्य - कुसुम

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सामाजिक जीवन में तमाम अनुभूतियों को व्यक्त करने के कई माध्यम होते हैं। कुछ अनुभूतियां कविता के रूप में स्फुटित होकर हमारे आपके बीच बहुत कुछ कह जाती हैं। ऐसी ही कुछ अनुभूतियों को आप सब के बीच रखने का एक छोटा सा प्रयास है।

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अपरिचित

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एक ग्रामीण आँचलके परिवेश में जिंदगी की तमाम मुसीबतों को बयां करती दास्तां ...

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जय त्रिवेदी 'अखिल' के लेख

फिर से कोई दिल को तोड़ेगा.....

31 जनवरी 2024
0
1

कुछ ख्वाब अधूरे टूटेंगे।कुछ सपने खुशियां लूटेंगे।कुछ साथी राह में छूटेंगे।कुछ अपने भी जब रूठेंगे।अफसोस मगर तो होगा जब,फिर से कोई दिल को तोड़ेगा।।......(1)यादों के जख्म हरे होंगे।नयनों में अश्रु भरे हों

अंजाम- ए- मोहब्बत

14 जनवरी 2024
0
0

कैसी ये मनहूस घड़ी थी,पटरी पर एक लाश पड़ी थी।दो हिस्सों में बंटी हुई थी,किसी ट्रैन से कटी हुई थी।।फोन कान से लगा हुआ था,दिल से उसके दगा हुआ था।प्यार किसी से करता था वो,किसी कली पर मरता था वो।।धोखा खाकर

वो हालातों से टूट गयी

14 जनवरी 2024
0
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जो भीख मांगती सड़कों पर,ये कैसी उसकी करनी थी।क्या कहूँ भला उस ममता को,जो दो बेटों की जननी थी।।अपनी औलाद ने छोड़ दिया,दर - दर की ठोकर खाने को।लाठी ने दामन थाम लिया,इस पेट की भूख मिटाने को।।जिनकी ममता ने

वन्दना

14 जनवरी 2024
0
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रवि की किरणें तम हरण करें।नवज्योति प्रकाशित वरण करें।।अविच्छिन धरा ये पावन हो।उषा की वेला मनभावन हो।।रत रहें प्रगति के पथ पर हम,निज कर्मशील अनुरागी हो।।सत्यनिष्ठ अरु धर्मनिष्ठ सतकर्मो के सहभागी हों।।प

अपरिचित

13 जनवरी 2024
1
2

सूरज की लालिमा अब मद्धिम हो चली थी। वह अस्ताचल की गोद में विश्राम करने चला जा रहा था। गांव की उन कच्ची पगडंडियों पर लोग ही नहीं बल्कि पक्षी- पखेरू भी अपने -अपने बसेरे की ओर लौट रहे थे। चारों तरफ फैली

हमारा समाज , देश का दर्पण

13 जनवरी 2024
2
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समाज में बुराइयां तभी पनपती हैं जब अच्छाई खामोश रहती है। अच्छाई खामोश इसलिए रहती है क्योंकि समाज का शिक्षित समाज जब पारिवारिक जिम्मेदारी को देश की जिम्मेदारी से अधिक महत्वपूर्ण समझने लगता है

चार दिन का मेहमान

13 जनवरी 2024
3
3

मेरे घर के ठीक सामने, शहतूत का एक पेड़ था जिस पर कुछ दिनों पहले एक चिड़िया ने अपना आशियाना बनाया था। दिन- रात मेहनत करके उसने अपना घोंसला बनाया। फिर अंडे दिए और कुछ ही दिनों बाद उनमे से छोटे छोटे बच्चे

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