मुश्किलों से बेपनाह,तुम बेवज़ह ही डरते हो,
मंज़िलो की बातें ,तुम तो रास्तें में करते हो।
मंजिलों की चाह रखना है बड़ा आसान सा,
मंज़िलो की चाह में क्या घुट-घुट
तुम भी मरते हो,
मुश्किलों से बेपनाह,तुम बेवज़ह ही डरते हो,
मंज़िलों की बातें तुम तो रास्ते में करते हो,
दूर तक फैला घना जो उम्मीदों का सैलाब सा,
दूर से ही देख कर के तुम क्यों पीछे मुड़ते हो,
कदम बढ़ाओ ,पहुँच जाओ मंज़िलो के पास तुम,
मुश्किलों से बेपनाह,तुम बेवज़ह ही डरते हो,
मंज़िलो की बातें तुम तो रास्तें में करते हो।
गगन शर्मा...✍️
हिंदी लेखन।