वो बचपन सुहाना अब बहुत याद आता है,
हर दिन नया फसाना अब बहुत याद आता है,
मेले में वो पापा के कंधों का झूला,
धूप में माँ के आँचल का सहारा याद आता है,
वो बचपन सुहाना बहुत याद आता है,
वो तरन्नुम,वो तराना अब बहुत याद आता है,
बारिश में वो मिट्टी के खेल ,
दोस्तो के साथ मस्ताना बहुत याद आता है,
वो बचपन सुहाना बहुत याद आता है,
वो हँसना-हंसाना अब बहुत याद आता है,
वो नाखूनों से लड़ने वाली लड़ाई स्कूल में,
वो अंगूठे के नौंक वाला मुक्का बनाना बहुत याद आता है,
वो नंगे पाँव की दौड़ जंगल में,
वो पाँव में काँटे का अचानक चुभ जाना बहुत याद आता है,
वो बचपन सुहाना अब बहुत याद आता है,
वो हँसना-हँसाना अब बहुत याद आता है।
गगन शर्मा...✍️
हिंदी लेखन ।