आप मुसीबतों को किस तरह जवाब देते है
रोमिला ने अपने पिता जैक्सन से कहा कि कितना कठिन वक्त है! मुफलिसी से बुरी तरह टूट गई हूं। एक मुसीबत खत्म होती है कि और नई मुसीबतें आ जाती हैं। पता नहीं ऐसा कब तक चलेगा?” जैक्सन जिसे लोग जैक भी कहते थें कहीं खाना बनाने का काम करता था। सुन कर वह उठा और चूल्हे पर तीन बर्तनों में पानी भरकर रख दिया। नीचे तेज आंच जला दी। जब पानी खौलने लगा तो उसने एक बर्तन में आलू, दूसरे में अरहर और तीसरे बर्तन में कॉफ़ी के बीज डाल दिए। फिर चुपचाप आ कर बैठ गया और रोमिला की बातें सुनने लगा। रोमिला दुखी थी और जैक का बरताव देख कर समझ नहीं पा रही थी कि उसका पिता कर क्या रहा है।
कुछ देर बाद जैक्सन चूल्हे के पास गया और आलू व अरहर के दाने निकाल कर एक तरफ रख दिए। फिर एक कप में काफी डाल दी। फिर रोमिला से कहा, “ये सब क्या है?” रोमिला ने कहा कि आलू, अरहर और कॉफ़ी ही तो है। जैक्सन ने कहा कि नहीं, इन्हें छूकर देखो। रोमिला ने आलू उठाकर देखे, वे नरम हो गए थे। अरहर के दाने फूल गए थे। और कॉफ़ी से महक उठ रही थी।
रोमिला ने देखा, समझा भी कि तीनों में अलग अलग बदलाव आया है। फिर भी वह जैक का आशय समझी नहीं। उसने पूछा कि आप कहना क्या चाहते हैं? जैक्सन ने कहा, “देखो मैंने आलू, अरहर और कॉफ़ी को एक जैसे खौलते पानी में रखा। लेकिन तीनों ने उसका सामना अपनी तरह से किया। आलू पहले तो कठोर और मजबूत थे, लेकिन खौलते पानी में नरम और मुलायम हो गए। दूसरी ओर अरहर के दाने छोटे और आलू की तुलना में कड़े और बारीक थे। उनका छिलका भीतर की चीज़ को बचाए रखता था। खौलते पानी ने उसको फुला दियाऔर पहले से नरम बना दिया। अब काफी सबसे अलग है। उबलते पानी का साथ पाकर वह पूरी तरह ही बदल गई। खौलते पानी ने उसे खुशनुमा अहसास से सराबोर कर दिया। कह कर जैक्सन कुछ पल रुका और अपनी बेटी से बोला, “अब तुम बताओ! मुसीबतें जब द्वार खटखटाती हैं तो तुम इन तीनों में से किसकी तरह बन जाती हो?” – मुनि नगराज
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बोकुजु के लिए वह एक पेड़ की तरह है
बोकुजु किसी गाँव की गली से होकर गुज़र रहा था। अचानक कोई उसके पास आया और उसने बोकुजु नाम के उस जेन साधु पर छड़ी से वार किया। साधु गिर पड़ा। उस आदमी की छड़ी भी उसके हाथ से छूट गई और वह भाग लिया। बोकुजु संभला, और गिरी हुई छड़ी उठाकर वह उस आदमी के पीछे पीछे कहते हुए भागा, “रुको, अपनी छड़ी तो लेते जाओ!”
बोकुजु उस आदमी तक पहुंच गया और उसे छड़ी सौंप दी। इस बीच यह सब देखते हुए लोग रुके और वहां भीड़ लग गई। लोगों को हैरानी हुई कि उस आदमी ने तो साधु पर वार किया था। उससे साधु चोटिल भी हुआ पर उसने बदले में कुछ कहने के उसके पीछे दौड़ लगा दी। किसी ने बोकुजु से पूछा कि इस आदमी ने तुम्हें जोर से मारा लेकिन तुमने कुछ नहीं कहा?”
बोकुजु ने कहा, “हाँ, लेकिन वह एक अलग बात थी। उसने मुझे मारा, वह बात वहीं खत्म हो गयी। यह ऐसा ही है जैसे मैं किसी पेड़ के नीचे बैठा होऊं और उसकी एक डाली मुझपर गिर जाए! तब मैं कर ही क्या सकता हूँ?”
भीड़ ने कहा,“पेड़ की शाखा तो बेजान शाखा है लेकिन यह तो एक आदमी है! हम पेड़ को भला-बुरा नहीं कह सकते, उसे दंड नहीं दे सकते। क्योंकि वह पेड़ ही है, वह सोच-विचार नहीं सकता। यह आदमी पेड़ की तरह ही किसी पेड़ से कुछ नहीं कहा जा सकता तो इस आदमी से क्यों कहूं? जो हो गया, वो हो गया। वह बीत चुका है। अब उसके बारे में सोचकर चिंता क्या करना? वह हो गया, बात ख़तम। मुझे तो अपना कर्तव्य करना चाहिए। मुझे ही क्यों हर किसी को अपना धर्म निभाना चाहिए।”
बोकुजु का मन एक संत का मन है। वह चुनाव नहीं करता, सवाल नहीं जो कुछ भी होता है उसे वह स्वीकार करता है। यह स्वीकार ही उसे मुक्त करता है। - स्वामी सत्यभक्त
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