shabd-logo

महकती हुई नौ पावन रातें

14 अगस्त 2016

83 बार देखा गया 83

नवरात्रि अर्थात नौ पावन, दुर्लभ,दिव्य व शुभ रातें। नवरात्रि संस्कृत शब्द है । मुख्यत: यह पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है। शक्ति की उपासना का पर्व शारदिय नवरात्र प्रतिपदा से नवमी तक निश्चित नौ तिथि, नौ नक्षत्र, नौ शक्तियों की नवधा भक्ति के साथ मनाया जाता रहा है।

शास्त्र का मत है " कलि चण्डी विनायको " अर्थात कलयुग में मां चंडी अर्थात दुर्गा और विनायक अर्थात विघ्न विनाशक भगवान गणेश जी का सबसे जादा प्रभाव है। इस कारण नवरात्रि का महात्म्य  और विशेष हो जाता है। एक है शारदीय नवरात्रि, जो आश्विन की उजली नौ रातों और दूसरी चैत्र माह के शुक्लपक्ष की नवमी तिथि तक मनाई जाती हैं। मकर संक्राति के आसपास माघ शुक्ल प्रतिपदा से और कर्क संक्रांति के बीतने पर आषाढ़ शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक: गुप्त नवरात्रि का निर्धारण किया गया है।

कालिका पुराण के अनुसार चैत्र और आश्विन नवरात्र सामान्य और राजसी लोगों  के लिए है, दोनों गुप्त नवरात्री साधको के लिए है।  हर व्यक्ति इसे बड़ी ही शुद्ध भावना और आदर के साथ करता है। निर्णय सिन्धु के अनुसार रजा का कर्तव्य है के देवी की प्रीती के लिए इस नवरात्री में माँ को पशु बलि दे जो ब्राह्मणों को वर्जित था,इस कारन यह नवरात्री सिर्फ राजाओ के लिए थी । विजया दशमी के दिन राज चिन्ह पूजन,शास्त्र पूजन और राज्य की सीना से बहिर्गमन विशेषत: किया जाता था जो राज्य की सीना में वृद्धि का सूचक था ।

उसके साथ साथ विजया दशमी की तिथि राज्याभिषेक के लिए भी सबसे जादा लाभ दायक और प्रमाणिक मानी जाती है।

इन नवरात्रियों को शक्ति की उपासना के लिए प्रशस्त माना गया है। इन चारों नवरात्रियों में आद्या शक्ति की साधना एवं उपासना की महिमा अपरंपार है। यही कारण है कि सम्पूर्ण भारत ही नहीं विदेशो में रह रहे भारतीयों में यह पर्व काफी महत्व्यपूर्ण और लोकप्रिय है और इन दिनों "दुर्गापूजा" का महोत्सव पूरी श्रद्धा, भक्ति एवं धूमधाम से मनाया जाता है।

 शारदीय नवरात्रि में दुर्गा पूजा "महापूजा" कहलाती है। नवरात्रि के नौ पुण्य रातो में तीन देवियों - पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती के नौ स्वरुपों पूजा होती है जिन्हे नवदुर्गा कहते हैं। वस्तुत: इस सृष्टि का सृजन, पालन एवं संहार करने वाली वह आद्याशक्ति एक ही है। उसके लोककल्याणकारी रूप को दुर्गा कहते हैं। तंत्रागम के अनुसार वह संसार के प्राणियों को दुर्गति से निकालती हैअत: दुर्गा दुर्गातिनाशानी कहलाती है।

 

प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी। तृतीयं चंद्रघण्टेति कुष्माण्डेती चतुर्थकम।।

पंचम स्कन्दमा‍तेति षुठ कात्यायनीति च। सप्तमं कालरात्रीति महागौ‍रीति चाष्टम।।नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा प्रकीर्तिता।

अर्थात- यह माँ दुर्गा के नौ मनोरम स्वरूपों का वर्णन है ।मंत्र, तंत्र एवं यंत्रों के माध्यम से उस शक्तितत्व की साधना के रहस्यों का उद्घाटन करने वाले ऋषियों का मत है कि उसकी उपासना से पुत्रार्थी को पुत्र, विद्यार्थी को विद्या, धनार्थी को धन एवं मोक्षार्थी को मोक्ष मिलता है। इसके पीछे प्रचलित शास्त्रीय कथा यह है की सर्वप्रथम भगवान श्री रामचंद्र जी ने इस शारदीय नवरात्रि पूजा का प्रारंभ समुद्र तट पर किया था और उसके बाद दसवें दिन लंका विजय के लिए प्रस्थान किया और विजय प्राप्त की। तब से असत्य, अधर्म पर सत्य, धर्म की जीत का पर्व दशहरा मनाया जाने लगा।आदिशक्ति के हर रूप की नवरात्र के नौ दिनों में क्रमशः अलग-अलग पूजा की जाती है। "माँ दुर्गा" की नौवीं शक्ति का नाम "सिद्धिदात्री" है। ये सभी प्रकार की सिद्धियाँ देने वाली हैं। इनका वाहन सिंह और कमल पुष्प इनका प्रमुख और प्रिय आसन हैं।

शक्तितत्व का प्रमाण है देवी भागवत की यह कथा जिसके अनुसार एक बार देवताओं ने "माँ भगवती" से पूछा - "कासि त्वं महादेवि" -हे महादेवी, आप कौन हैं ? तब देवी ने उत्तर दिया - "मैं और ब्रह्मा"- हम दोनों सदैव शाश्वत या एकत्व हैं। जो वह है, सो मैं हूं और जो मैं हूं, सो वह है। हममें भेद मानना मतिभ्रम है। निगम एवं आगम के तत्ववेत्ता ऋषियों के अनुसार वह परमतत्व आदि, मध्य एवं अंत से हीन है। वह निराकार, निर्गुण, निरुपाधि, निरञ्जन, नित्य, शुद्ध एवं बुद्ध है। वह एक है, विभु है, चिदानन्द है, अद्भुत है, सबका स्वामी एवं सर्वत्र है। फिर भी वह लीला के लिए अनेक रूपों में अवतरित होकर लोक कल्याण करता है। इसके साथ साथ शक्ति उपासना शिव की आराधना के बिना अपूर्ण है ।तभी शास्त्र का वचन है के शिव ही शक्ति है और शक्ति ही शिव है |

ज्योतिर्मय की अन्य किताबें

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए