Writer,poet
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ना किसी महफिल की चमक अच्छी लगती है । ना किसी फूल की महक अच्छी लगती है । चहक उठता है जिसकी गूंज से सारा घर मेरा । मुझे तो बस मेरी गुड़िया की पायल की वो खनख अच्छी लगती है ।
मिला नज़रों से वो नज़रें दिल पर वार करते हैं । हमारे सामने ही उनसे आंखें चार करते हैं ।। कि रहते हैं दिल में उनके वो जिनका हाथ थामे हैं । वो कहते हैं मगर हमसे कि तुमसे प्यार करते हैं ।।
कि, ज़ुदा होकर भी वो तुझसे कभी मायूस ना होता । ज़ख्म दिल पर लगा था जो, वो भी महसूस ना होता । अगर मिलती वफा के बदले में ना बेवफाई तो । यूं मोहब्बत में कोई आशिक़ कभी जासूस ना होता ।।
जो मिलेख़ुदातो पूछ लेंगे हम भी मिट्टी का जिस्म देकर शीसे सा दिल क्यूं दिया तूने , फिर मिलाकर किसी से सिखा कर मोहब्बत आदत लगा उसकी उसे जुदा क्यूं किया तूने । मैं तो जी रहा था अछा भला , बगै
हां दुआ मांगी थी ये रब से कि मेरा तू हो जाए । जो लिपटी रहती फूलों से तू वो खुशबू हो जाए । जो बहता है निगाहों से खुशी या ग़म में ही हर दम । कि मेरी आंखों से बहने वाला तू वो आंसू हो जाए ।
निगाहों में मेरे यारा तेरी ये राज़ कैसा है । तेरा हर शब्द ओ यारा एक साज़ जैसा है । नहीं कोई मुझे चाहत रही अब इस ज़माने की । कि, ज़हान् में दूसरा कोई ना मेरे यार जैसा है ।
मोहब्बत में मेरे यारा तेरी ख़ुद को भुलाया है । पहले उस ख़ुदा से भी सदां तुझको बुलाया है । नहीं ग़म कोई अब मुझको ज़हां की ठोकरों का है । एक बस याद ने तेरी मुझे इतना रुलाया है ।।
तेरी पलकों के साये में खुद को, महफूज़पाता हूं मैं . जब भी याद आती है, , तुमको मेरी तो चला आता हूं मैं । गीत मोहब्बत के गा सकूं , इतना तो अब मुझमें दम नहीं . मगर तेरी यादों के नग्में गुनग
मैं मुसाफिर हूं , मोहब्बत का मुझे , राहगीर ना समझ लेना , मैं मंजिल हूं , तेरी मुझे जागीर ना समझ लेना ।। ,, , ,,, ,
वफा के बदले , ज़फा मिली . क्याइश्क़ करने की सज़ा मिली । अपनी यादों का घर बसाकर , इस दिल से,, चले गए तुम . एक बार किये गुनाह की सज़ा , हमें कई दफ़ा मिली । ज़ख्म जो सूखे भी नहीं थे अब