जो मिलेख़ुदातो पूछ लेंगे हम भी
मिट्टी का जिस्म देकर शीसे सा दिल क्यूं दिया तूने ,
फिर मिलाकर किसी से सिखा कर मोहब्बत
आदत लगा उसकी उसे जुदा क्यूं किया तूने ।
मैं तो जी रहा था अछा भला ,
बगैर किसी के सहारे भी .
साथ देकर कुछ पलोंका, मुझे उम्र भर के लिये तन्हा ,क्यूं किया तूने ।
ऐ ख़ुदा अच्छी नहीं तेरी ये आदत ख़ुदाई की ,
देकर दो पल की खुशियां, मुझे ता उम्र ग़म ज़दा क्यूं किया तूने ।। , , , ,
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