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तज़ुर्बा

4 जून 2022

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तेरी पलकों के साये में खुद को,  

महफूज़पाता हूं मैं . 

जब भी याद आती है, , तुमको मेरी तो चला आता हूं मैं । 


गीत मोहब्बत के गा सकूं , 

इतना तो अब मुझमें दम नहीं . 

मगर तेरी  यादों के नग्में गुनगुनाता हू मैं । 


परिंदा जो डाल से उड़ गया , 

उसे वापस कैसे लाऊं . 

वो ख़ुद आ गया होगा ये सोचके  

हर रोज़ घर लौट आता हूं मैं । 


ये सोचकर किसी रोज़ , 

मेरी गली से गुज़र जाना तुम .. 

कि,  क्यूं रोज़ तेरी गली के चक्कर लगाता हूं मैं । 


गुज़ार ती तमाम उम्र ,, 

जिसके ऐतबार पे तुमने . 

मोहब्बत का वो घरौंदा हर रोज़ मिटाता हूं मैं । 


कहीं मौका ना मिले इस ज़माने को , 

मुझ पर हंसने  का . 

बस इसी डर से हर पल मुस्कुराता हूं मैं । 


दिल तोड़ कर जाने वाले , 

अपने ही होते हैं . 

अनु , ये तज़ुर्बा ज़िंदगी का बताता हूं मैं ।। 

        ,.   ,                 .     ,                  .   ,    




              

,                 .         

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