तेरी पलकों के साये में खुद को,
महफूज़पाता हूं मैं .
जब भी याद आती है, , तुमको मेरी तो चला आता हूं मैं ।
गीत मोहब्बत के गा सकूं ,
इतना तो अब मुझमें दम नहीं .
मगर तेरी यादों के नग्में गुनगुनाता हू मैं ।
परिंदा जो डाल से उड़ गया ,
उसे वापस कैसे लाऊं .
वो ख़ुद आ गया होगा ये सोचके
हर रोज़ घर लौट आता हूं मैं ।
ये सोचकर किसी रोज़ ,
मेरी गली से गुज़र जाना तुम ..
कि, क्यूं रोज़ तेरी गली के चक्कर लगाता हूं मैं ।
गुज़ार ती तमाम उम्र ,,
जिसके ऐतबार पे तुमने .
मोहब्बत का वो घरौंदा हर रोज़ मिटाता हूं मैं ।
कहीं मौका ना मिले इस ज़माने को ,
मुझ पर हंसने का .
बस इसी डर से हर पल मुस्कुराता हूं मैं ।
दिल तोड़ कर जाने वाले ,
अपने ही होते हैं .
अनु , ये तज़ुर्बा ज़िंदगी का बताता हूं मैं ।।
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