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अपनी कोई भी पुरानी चीज़ उठाकर देखिये

12 अक्टूबर 2021

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अपनी कोई भी पुरानी चीज़ उठाकर देखिये,
लुत्फ कितना आएगा बस आज़माकर देखिये ।

ज़िन्दगी में रंग कितने यूँ समझ में आएगा,
कोई भी नग्मा पुराना ख़ुद ही गाकर देखिये ।

मिल सकेगा तुमको भी लाखों दिलों का प्यार यूँ ,
बस किसी के जख्मों को मरहम लगाकर देखिये ।

कैसे अश्क़ों से भरा है आजकल हर आदमी,
हो सके काँधे पे उसका सर टिकाकर देखिये ।

हँसते हैं जो लोग किसी की मौत पर यूँ ही अबस,
कह दो कोई सपनों में अपना गँवाकर देखिये ।

---हर्ष महाजन 'हर्ष' ©
बह्र : बहरे रमल मुसम्मन महजूफ़
(2122 2122 2122 212)
★★आपकी नज़रों ने समझा प्यार के काबिल मुझे★★

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रचनाएँ
बोलती ग़ज़लें
0.0
दोस्तो इस नए ग़ज़ल संग्रह 'बोलती ग़ज़लें' के साथ आपके सामने मैं खुद मुख़ातिब हूँ । मेरी अन्य विद्याओं की रचनाएँ प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहीं हैं । इस किताब के मुतल्लक मैं ये कहना चाहूँगा की मैनें कभी शेर शौकिया तौर पर कभी नहीं कहे औऱ न ही ग़ज़ल कभी जबर्दस्ती ग़ज़ल कहने की कोशिश की । मैंनें ग़ज़ल को गहराई से महसूस किया है । कोशिश हमेशा रही कि ग़ज़ल का रंग कभी फीका न पड़े । प्रस्तुत ग़ज़ल संग्रह की रचनाओं में आम आदमी से जुड़े दुख दर्द एवम सरोकारों की स्पष्ट झलक देखने को मिलेगी । मेरी ग़ज़लों में दुनियाँ का रंग आपसी रिश्ते,तंज औऱ उनमें उठे दर्दों का पूरा समागम सरल भाषा में ब्यान होता मिलेगा । ग़ज़ल का यही परंपरागत रंग ही किसी भी ग़ज़ल-गो को एक शायर का रुतबा दिलवाता है । हर्ष महाजन 'हर्ष'
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उसको लफ्ज़ ए मुहब्बत सिखाता रहा

12 अक्टूबर 2021
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भूखे नंगे शहर में हरसूं बसते हैं खलीफे लोग

12 अक्टूबर 2021
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मुझको वो मेरे गुनाहों की सज़ा देते हैं

12 अक्टूबर 2021
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अपनी कोई भी पुरानी चीज़ उठाकर देखिये

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मेरे यकीं को न नजरों से तुम गिरा देना

12 अक्टूबर 2021
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खाके ठोकर जो गिरें वो तो सँभालूँ यारो

13 अक्टूबर 2021
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