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मेरे यकीं को न नजरों से तुम गिरा देना

12 अक्टूबर 2021

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मेरे यकीं को न नजरों से तुम गिरा देना,
कोई भी जुर्म अगर है तो फिर सज़ा देना ।

मैदान-ए-इश्क़ में तुझ सा कोई करीब नहीं,
करूँ बुरा भी कभी थोड़ा मुस्करा देना ।

मैं उन दिलों में भी धड़का हूँ जो पसंद नहीं,
ये कैसी आग है उलफ़त में तू बुझा देना ।

मेरी ग़ज़ल में कभी तुम भी बात अपनी करो,
रखूँगा मतले में तुझको मुझे बता देना ।

तड़प तड़प के ये दिल जाने कब तमाम हुआ,
तो क्या लिखा है मुक़द्दर में तुम सुना देना ।

कभी तुझे यूँ लगे अश्क़ चश्म पर भारी,
मेरे  नसीब के वो अश्क़ दो गिरा देना ।

सज़ा मिली है बहुत कुछ गुनाह औऱ मगर,
बिछुड़ के रोया बहुत और मत सज़ा देना ।

हर्ष महाजन 'हर्ष'©
1212 1122 1212 112(22)

"गरीब जान के हमको गले लगा लेना"

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आलोक सिन्हा

आलोक सिन्हा

बहुत सुन्दर गजल

12 अक्टूबर 2021

हर्ष महाजन 'हर्ष'

हर्ष महाजन 'हर्ष'

12 अक्टूबर 2021

आपकी आमद औऱ उस पर आपकी होंसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया । इस बज़्म को यूँ ही रौशन करते रहिए आदरणीय।💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

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रचनाएँ
बोलती ग़ज़लें
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दोस्तो इस नए ग़ज़ल संग्रह 'बोलती ग़ज़लें' के साथ आपके सामने मैं खुद मुख़ातिब हूँ । मेरी अन्य विद्याओं की रचनाएँ प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहीं हैं । इस किताब के मुतल्लक मैं ये कहना चाहूँगा की मैनें कभी शेर शौकिया तौर पर कभी नहीं कहे औऱ न ही ग़ज़ल कभी जबर्दस्ती ग़ज़ल कहने की कोशिश की । मैंनें ग़ज़ल को गहराई से महसूस किया है । कोशिश हमेशा रही कि ग़ज़ल का रंग कभी फीका न पड़े । प्रस्तुत ग़ज़ल संग्रह की रचनाओं में आम आदमी से जुड़े दुख दर्द एवम सरोकारों की स्पष्ट झलक देखने को मिलेगी । मेरी ग़ज़लों में दुनियाँ का रंग आपसी रिश्ते,तंज औऱ उनमें उठे दर्दों का पूरा समागम सरल भाषा में ब्यान होता मिलेगा । ग़ज़ल का यही परंपरागत रंग ही किसी भी ग़ज़ल-गो को एक शायर का रुतबा दिलवाता है । हर्ष महाजन 'हर्ष'
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12 अक्टूबर 2021
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12 अक्टूबर 2021
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मेरे यकीं को न नजरों से तुम गिरा देना

12 अक्टूबर 2021
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खाके ठोकर जो गिरें वो तो सँभालूँ यारो

13 अक्टूबर 2021
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