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मुझको वो मेरे गुनाहों की सज़ा देते हैं

12 अक्टूबर 2021

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मुझको वो मेरे गुनाहों की सज़ा देते हैं,
ज़ह्र देते है वो फिर खुद ही दवा देते है।

खौफ़ दुनिया का है जो इश्क खता कहते हैं,
करके शोला ये बदन फिर क्यूँ हवा देते हैं ।

इश्क भी करते हैं वो ज़ह्र असर होने तक,
ज़ख़्म भी देते हैं वो फिर क्यूँ दुआ देते हैं ।

बे-वफ़ा है वो मगर दिल है कि मानेगा नहीं,
दर्द शेरों से मेरे दिल का हरा देते हैं ।

'हर्ष" जब कहता है ख़ुद को ही बगावत कर ले,
ख़ुद यूँ हाथों की लकीरों को मिटा देते है।

___हर्ष महाजन 'हर्ष'©


9 अक्टूबर 2012
2122 1122 1122 22
"दिल की आवाज भी सुन दिल के तराने पे न जा"


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रचनाएँ
बोलती ग़ज़लें
0.0
दोस्तो इस नए ग़ज़ल संग्रह 'बोलती ग़ज़लें' के साथ आपके सामने मैं खुद मुख़ातिब हूँ । मेरी अन्य विद्याओं की रचनाएँ प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहीं हैं । इस किताब के मुतल्लक मैं ये कहना चाहूँगा की मैनें कभी शेर शौकिया तौर पर कभी नहीं कहे औऱ न ही ग़ज़ल कभी जबर्दस्ती ग़ज़ल कहने की कोशिश की । मैंनें ग़ज़ल को गहराई से महसूस किया है । कोशिश हमेशा रही कि ग़ज़ल का रंग कभी फीका न पड़े । प्रस्तुत ग़ज़ल संग्रह की रचनाओं में आम आदमी से जुड़े दुख दर्द एवम सरोकारों की स्पष्ट झलक देखने को मिलेगी । मेरी ग़ज़लों में दुनियाँ का रंग आपसी रिश्ते,तंज औऱ उनमें उठे दर्दों का पूरा समागम सरल भाषा में ब्यान होता मिलेगा । ग़ज़ल का यही परंपरागत रंग ही किसी भी ग़ज़ल-गो को एक शायर का रुतबा दिलवाता है । हर्ष महाजन 'हर्ष'
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उसको लफ्ज़ ए मुहब्बत सिखाता रहा

12 अक्टूबर 2021
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भूखे नंगे शहर में हरसूं बसते हैं खलीफे लोग

12 अक्टूबर 2021
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मुझको वो मेरे गुनाहों की सज़ा देते हैं

12 अक्टूबर 2021
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अपनी कोई भी पुरानी चीज़ उठाकर देखिये

12 अक्टूबर 2021
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मेरे यकीं को न नजरों से तुम गिरा देना

12 अक्टूबर 2021
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खाके ठोकर जो गिरें वो तो सँभालूँ यारो

13 अक्टूबर 2021
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