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भूखे नंगे शहर में हरसूं बसते हैं खलीफे लोग

12 अक्टूबर 2021

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भूखे नंगे शहर में हरसूं बसते हैं खलीफे लोग,
ढूँढा करते हर तबके को ठगने के तरीके लोग |

महफ़िल सूनी, मैकश सूनी, सारे सूने साज़ हुए,
गम में डूबे हैं सब इतने, भूल गए सलीके लोग |

मंजिल नहीं मिली तो ग़म में आशिक यूँ पागल हुए,
तोड़-तोड़ गुंचे फूलों के, उजाड़ें यूँ बगीचे लोग |

झूठी शान-ओ-शौकत में अब दुनियां यूँ मशगूल हुई,
कीमती चीज़ों के चक्कर में भूल गए गलीचे लोग |

मुजरिम यूँ परवाने बन, जब घर में आ दाखिल हुए,
दीवाने बन झाँका करते दिल के यूँ दरीचे लोग |

© हर्ष महाजन 'हर्ष'

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रचनाएँ
बोलती ग़ज़लें
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दोस्तो इस नए ग़ज़ल संग्रह 'बोलती ग़ज़लें' के साथ आपके सामने मैं खुद मुख़ातिब हूँ । मेरी अन्य विद्याओं की रचनाएँ प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहीं हैं । इस किताब के मुतल्लक मैं ये कहना चाहूँगा की मैनें कभी शेर शौकिया तौर पर कभी नहीं कहे औऱ न ही ग़ज़ल कभी जबर्दस्ती ग़ज़ल कहने की कोशिश की । मैंनें ग़ज़ल को गहराई से महसूस किया है । कोशिश हमेशा रही कि ग़ज़ल का रंग कभी फीका न पड़े । प्रस्तुत ग़ज़ल संग्रह की रचनाओं में आम आदमी से जुड़े दुख दर्द एवम सरोकारों की स्पष्ट झलक देखने को मिलेगी । मेरी ग़ज़लों में दुनियाँ का रंग आपसी रिश्ते,तंज औऱ उनमें उठे दर्दों का पूरा समागम सरल भाषा में ब्यान होता मिलेगा । ग़ज़ल का यही परंपरागत रंग ही किसी भी ग़ज़ल-गो को एक शायर का रुतबा दिलवाता है । हर्ष महाजन 'हर्ष'
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उसको लफ्ज़ ए मुहब्बत सिखाता रहा

12 अक्टूबर 2021
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भूखे नंगे शहर में हरसूं बसते हैं खलीफे लोग

12 अक्टूबर 2021
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मुझको वो मेरे गुनाहों की सज़ा देते हैं

12 अक्टूबर 2021
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<div align="left"><p dir="ltr"><i>मुझको वो मेरे गुनाहों की सज़ा देते हैं, </i><br> <i>ज़ह्र देते है व

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अपनी कोई भी पुरानी चीज़ उठाकर देखिये

12 अक्टूबर 2021
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मेरे यकीं को न नजरों से तुम गिरा देना

12 अक्टूबर 2021
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खाके ठोकर जो गिरें वो तो सँभालूँ यारो

13 अक्टूबर 2021
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<div align="left"><p dir="ltr"><br></p> <p dir="ltr"><i>खाके ठोकर जो गिरें वो तो सँभालूँ यारो,</i><b

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