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उसको लफ्ज़ ए मुहब्बत सिखाता रहा

12 अक्टूबर 2021

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उसको लफ्ज़ ए मुहब्बत सिखाता रहा,
नज़्म वो लिखती ..धुन मैं बनाता रहा ।

उसकी तहरीरें दिल को..थीं चुबती रहीं,
मिसरा दर मिसरा मुझको रुलाता रहा ।

हम मुहब्बत में शायद.. रहे कम असर,
फिर भी दिल मैं.....उसी पे लुटात़ा रहा ।

मैंनें सदियों कही....गम पे ग़ज़लें बहुत,
पर मैं नज्में उसी की........सुनाता रहा ।

रूठ कर जब वो दिल से हुई बे-दखल ,
जाने अफ़साने....जग क्या बनाता रहा ।

उम्र भर मैकदा से.............रहा दूर दूर,
अब मैं बज्मों में पीता..... पिलाता रहा ।

हर्ष महाजन 'हर्ष'


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रचनाएँ
बोलती ग़ज़लें
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दोस्तो इस नए ग़ज़ल संग्रह 'बोलती ग़ज़लें' के साथ आपके सामने मैं खुद मुख़ातिब हूँ । मेरी अन्य विद्याओं की रचनाएँ प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहीं हैं । इस किताब के मुतल्लक मैं ये कहना चाहूँगा की मैनें कभी शेर शौकिया तौर पर कभी नहीं कहे औऱ न ही ग़ज़ल कभी जबर्दस्ती ग़ज़ल कहने की कोशिश की । मैंनें ग़ज़ल को गहराई से महसूस किया है । कोशिश हमेशा रही कि ग़ज़ल का रंग कभी फीका न पड़े । प्रस्तुत ग़ज़ल संग्रह की रचनाओं में आम आदमी से जुड़े दुख दर्द एवम सरोकारों की स्पष्ट झलक देखने को मिलेगी । मेरी ग़ज़लों में दुनियाँ का रंग आपसी रिश्ते,तंज औऱ उनमें उठे दर्दों का पूरा समागम सरल भाषा में ब्यान होता मिलेगा । ग़ज़ल का यही परंपरागत रंग ही किसी भी ग़ज़ल-गो को एक शायर का रुतबा दिलवाता है । हर्ष महाजन 'हर्ष'
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उसको लफ्ज़ ए मुहब्बत सिखाता रहा

12 अक्टूबर 2021
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12 अक्टूबर 2021
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मुझको वो मेरे गुनाहों की सज़ा देते हैं

12 अक्टूबर 2021
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अपनी कोई भी पुरानी चीज़ उठाकर देखिये

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मेरे यकीं को न नजरों से तुम गिरा देना

12 अक्टूबर 2021
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खाके ठोकर जो गिरें वो तो सँभालूँ यारो

13 अक्टूबर 2021
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