नारी का त्याग अनुपम है ,
फिर भी ना जाने क्यों लोग उस
पर प्रश्नचिन्ह लगाते हैं ।
आगे आगे बढ़ते देख रास्ते का रोड़ा बन जाते हैं
हर फर्ज धर्म वह हंसकर निभाती है
लाख कोशिशों के बाद भी किसी को खुश नहीं कर पाती है खुलकर हंसे तो बेशर्म हो जाती है
चुप रहे तो कमजोर कहलाती है
लड़े आत्मसम्मान के लिए तो लड़ाकू बन जाती है
चुप रहकर चाहती रहे तो अबला कहलाती है
वह क्या चाहती है किसी को खुलकर बता नहीं पाती है समझौता कर वह हर बार पीछे हट जाती है
नारी अगर सारी में हो तो संस्कारी कहलाती है
फिर क्यों वही नारी जीन्स पहन ले तो लोगों
के नजरों में भारी हो जाती है !!!
माँ बहन बेटी अर्धांगिनी बन कर हर रूप में उसने तुम्हे संवारा है।
स्त्रीयों को सम्मान देना भी तुम्हे सिखाया है !!
फैलाने दो उसे पंख छू लेने दो आसमान
तब शायद सर उठाकर हो सकेगा नारी का सम्मान।।
नारी दिवस पर सभी नारियों के सम्मान के लिए मैंने अपना कदम उठाया है !!
छोटी सी कोशिश कर नारी होने का फर्ज निभाया है
मेरी छोटी सी कविता मेरी प्रेरणा स्रोत बन जाए
सभी के मन में नारी के लिए सम्मान जाग जाए !!
✍️ प्रियंका.....