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वर्षा ऋतु

26 नवम्बर 2022

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    दादुर को शोर कहुॅ गावत चकोर मोर 
      मेघन की कारी कारी कोर कोर देखि के
     प्रेम मे विभोर भूलि भेद तोर मेर केर
      करि किलकोर झूमैं हॅसि बोलि बोलि के
       पानी पाय धानी आसमान विललानी 
          कहुॅ छानी पर करि मनमानी वेलि वेलि के 
            अपनी विरानी सब भूलि के कहानी 
               खुशी मानैं वाल वृन्द गली गली लोटि पोटि के
घुमडि घुमडि घोर घनन बनन बीच 
बुन्द पात करि पात पात सरसायो है
सदल दलान मेघ मघवान को संदेश 
पाय नीर झरिन सों गलिन वहायो है
ग्रीषम को ताप मेटिवे को या कि भेंटिवे को
निज की प्रिया को मुख देखिवे को आयो है
याकि रूठी भूमि प्रेयसी को ठण्डी बुन्दन की 
जल कंकरीन सों जगाइवे को आयो है
         झमकि झमकि जोर झरैं सब पीर हैं
           ग्रीषम में वर्षा को नीर मन भावै है
             चंचल चपल विद्यु चमकि चमकि कहुॅ 
               कड़कि कड़कि मेघ तडित दिखावों हैं
                 सिसकि सिसकि रही कोंछरे मा बैठि कहुॅ 
                 रोय रोय सुधि आजु प्रिय की लगावै है 
                    कोई निज प्रिय का सवेरे झरगदरे मा
                  नेह से पुकारि पुचकारि के जगावै है
बैरी बदरान नीर झरि दो झरान ऐसो 
भीजो सब ईंधन औ चूवत रसोई है
देखि महतारी मुख रोवत कुमारी प्यारी 
रोटी एक मांगि मांगि हार रात सोई है
भीजिगो चुल्हवा औ चाकी जब घर की तो
मांगि कहुॅ चून सुलगाई आग रोई है
तन मन मा आग तो लगी ही परदेश पिय 
पेट हू लगाइ बैरी मति मोरी खोई है
            घर हूॅ न घाटनाहीं फूस खाली ठाट 
               कहुॅ दीखत न खाट और ठाट बाट को कहे
                रात रात गात पात पात पै ही हो प्रभात 
                   आतप तपात तन अकुलात ही रहे 
                    तात मात भ्रात सुत विललात ललचात 
                      कुठिला दिखात खाली अन्न ना कहूॅ लहू
                       आसमान मेघ मुलुकात देखि हरषात 
                       मन मुसुकात वरसात तो बनी रहे 
बुन्द का गिरी है मानों देश पै गिरी है बम्ब 
जैसे कोई राजा सैन्य बल को संवारा है
वैसे ही विहान में किसान तजि खान पान 
पीटि पीटि टेंय टेंय हरन निकारै है
कोई कहै ककुआ सों मुखिया सों कोऊ कहै 
बेढ कौने धान कौन खेतवा विभोर है
कोऊ लागो छानी औ छपरा सम्हरिवे मां
मोहरा सम्हारै कोऊ चूवत पनारो है 
              पलंग बनी है भूमि हरी हरी घास मानौं 
               चादर बिछी है देखि भौन सब भूले हैं
                 पलवल अथाह कहुॅ डूबत बराह 
                  कहुॅ महिष मही को श्रंग से विदीरि डोलैं हैं
                   हरे हरे पात परबैठि बैठि चहचहात 
                    शुक सारिका हू कैसे मीठे बोल बोले हैं
                      होत भिनुसार थामि हर फार हार हार 
                      कृषक हरेते हेतु हर लिए डोलैं है 
भूरे भूरे कारे कारे बदरा झरन लागे
 जरन बरन लागे हिय ना जनाई है
मन्द मन्द ठण्डी ठण्डी पवन उन्हें है लू ही
बुन्द मानौं आग को अंगार बनि आई है
गरजि गरजि रहे बरजि सुपंथ कन्त 
जिनके वसे हैं परदेश सुधि आई है 
सावन में आवन को संदेश मिलो है काहे 
आजु ही ते आग मेरे मन में लगाई है
              बुन्द बुन्द कुन्द कुन्द कदली दलान गिरि
               गिरि कन्दरान औ बनान हू सुहाई है
                 झिल्ल पिक चातक औ झींगुर को शोर मानौं
                  आगत के स्वागत मे बाजत बधाई है
                   फूलि फोरि फवी नव ऑकुर निकसि कली
                   लतिका विकसि गली गली सरसाई है
                    धाये नद नदी प्रिय अंक भेंटिवे को कहुॅ 
                    वर्षा वरस वाद आजु फिरि आई है
घूरतीं घटायें घनघोर घोर घहरातीं 
घनन घनन घन गर्जन सुनाती हैं
घिर घिर घटाओं ने घूम घूम घेरा जग 
घर घर पर उमड घुमड नीर बरसातीं हैं
घड़ी घडी घनीभूत घने घने बनों और
वरसा घट घट पर घाट घाट सरसातीं हैं
घोल घोल सिल्लयाॅ वर्फ की घनेरी आज 
पछुआ हवायें जग सारा यों कपातीं हैं
           टप टप टपकती बूॅद उर में खटकती जैसे 
             टूटे हुए कांटे कीनोक चुभ जाती है
               सर्द मौसम को मिला हवा प्रेयसी का साथ 
                बार बार ठण्डा हुआ मर्म छू जाती है
                कामुक को रंग और भावुक को ढंग तथा
               साधक का उमंग रंग खरा कर जाती है
                फटे चीथडों में फॅसे वीहडों के बीच नन्ही 
                  बूॅद बूॅद शीत की फुहार डस जाती है

आचार्य राममोहन मिश्र की अन्य किताबें

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आचार्य राममोहन मिश्र की डायरी
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जल्द मेघ समान कला कलित नयनकोर खिची रमणीय है अर्ध इंदु लसित नथनासिका कर्णफूल नक्षत्र लटक रहे प्रकृति की हॅसती खिलवेलियाॅ बनवसन परिधान हरीतिमा सज संवर नभ से जगमग सहम उतर

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शरद ऋतु

25 नवम्बर 2022
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जगत त्रस्त किरण रविताप से तप तपाकर तृप्त अतृप्त सी मनहरण शशिशीतसमा सुखद शरद व्योम धरा पर छा गयी सरसती सरसर वहती पवन अतिमनोज्ञ प्रशान्त सभीत सी हृदय तंत्र विमर्दित अंग सब जनु अनंग

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वसन्त

25 नवम्बर 2022
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परम शीतल स्नेह स्वरस सरस सर सरोवर शान्त सुगम घना अतिमना विमना निशि चंद्र लख कमलिनी कर केलि मुदित हुई जगत जिष्णु सहिष्णु हो उष्णजब भुवनभास्कर भोरउदित हुआ परम पावन पीतमयी किरण जगत श्रृष्ट

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वसन्त

25 नवम्बर 2022
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पात पात पंकज पखेरू पवि पावन पे पीत पट पावनपटीन दुपटीन पैछाई पीतिमा है पग पग जग नग मग पादप पिपीलिका पुनीत पातकीन पैपैंजनी पिनहाय पुनि पायन पलोटे जनु पीत परिधान पट लिपटे सुतीन्ह पैपुलकि प

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वसन्त

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पात पात पंकज पखेरू पवि पावन पे पीत पट पावनपटीन दुपटीन पैछाई पीतिमा है पग पग जग नग मग पादप पिपीलिका पुनीत पातकीन पैपैंजनी पिनहाय पुनि पायन पलोटे जनु पीत परिधान पट लिपटे सुतीन्ह पैपुलकि प

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वसन्त घनाक्षरी छन्द

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पात पात पंकज पखेरू पवि पावन पे पीत पट पावनपटीन दुपटीन पैछाई पीतिमा है पग पग जग नग मग पादप पिपीलिका पुनीत पातकीन पैपैंजनी पिनहाय पुनि पायन पलोटे जनु पीत परिधान पट लिपटे सुतीन्ह पैपुलकि प

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पात पात पंकज पखेरू पवि पावन पे पीत पट पावनपटीन दुपटीन पैछाई पीतिमा है पग पग जग नग मग पादप पिपीलिका पुनीत पातकीन पैपैंजनी पिनहाय पुनि पायन पलोटे जनु पीत परिधान पट लिपटे सुतीन्ह पैपुलकि प

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दादुर को शोर कहुॅ गावत चकोर मोर मेघन की कारी कारी कोर कोर देखि के प्रेम मे विभोर भूलि भेद तोर मेर केर करि किलकोर झूमैं हॅ

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