काव्य शास्त्र विनोदेन कालो गच्छति धीमताम
_____________
सत्ता की कुर्सी पर निगाह को गड़ाए
जग सूझता न और कुछ सदियाँ छली गयीं
चाटुकार चापलूस धन पद के लालचियों की
बेटियाॅ जमीर बेच मुगलों संग चली गयीं
काटी गयीं मारी गयीं टुकडों में बाॅटी गयीं
है न अफसोस कुछ भट्टियों में जल गयीं
सड़कों पर नाचती नपुंसकों की टोलियाॅ
जिनकी बेटियाॅ कडाह में खींच कर तली गयीं
संघ के थुरनधरों हिन्दुत्व के कलनदरों की
सनातनी बवंडरों की टोलियाँ कहाॅ गयीं
धर्म संस्कति के विकट केंकडों को चाट गयीं
स्वार्थी समन्दरों की मछलियाॅ कहाॅ गयीं
ज्ञान के धुरंधरों और शक्ति के मुछनदरों की
तोपों बन्दूकों की गोलियाॅ कहाॅ गयीॅ
अस्मतों के लुटने पर छातियों को पीटते हो
सिकंदरो वो छद्म की गोटियाॅ कहाॅ गयीं