जल्द मेघ समान कला कलित नयनकोर खिची रमणीय है
अर्ध इंदु लसित नथनासिका कर्णफूल नक्षत्र लटक रहे
प्रकृति की हॅसती खिलवेलियाॅ बनवसन परिधान हरीतिमा
सज संवर नभ से जगमग सहम उतरती संध्य सुर सुन्दरी
भ्रमण संसृति का कर हो थकित भुवनभास्कर रश्मि विरथ हुई
शिखर सौम्य हुए गिरि श्रंग सब स्वर्ण पीतसमा परिधान धर
ढल गया नव यौवन सूर्य काजरित जर्जर कान्ति जरा सदृश
प्रकृति का परिवर्तन दृश्य ये हर मन स्थिति में नर्तन यहाॅ
रथ रथी अरू सारथि थक अथक श्रम मिथक जग जीवन ढो रहे
अगत ज्ञात गतागति में उलझ चर अचर जलचर नभचर यहाॅ
दिवस भर तृण घास उदर भरेनिरख सांझ चलीं बन प्रान्त से
सुघर वत्स सहित गृह गोष्ठ को चल पड़ बन धेनु समूह सब
पग प्रहार विनिसृत धूल जब उड चली नभ मध्य गुबार बन
जगत को अब भान करा रहे थकित भानु दिवस अवसान का
जग कोलाहल शान्त मन स्थिति जगत नन्दन बन्दन कर रहे
तप रहे तप में जप नाम धुन जगत पालक घालक ईश को
नद नदी निरताति प्रवाह ले परम गति हित गतिमय वह रहे
श्रवण रंध्र विमर्दित हिमशिखर झर रहे झर झर अति हो मुखर
खग मृगादिक कोटर गिरि गुहा श्रमित हो शयनासन राजते
शुभ प्रभातमयी उर कल्पना भर नयन कर शयन अयन रहे
सर सरोवर सारस और वकुल उदर पूर्त हितार्थ मचल मचल
हर दुकूल बना अनुकूल सब अति प्रशान्त मगर खग वृन्द था
निशि समीप निरख गोधूलि लख उचक पंख फुला उड़ने लगे
निबिड में लघु शावक के लिए शलभ कीट दबा निज चंचु में
दिवस भर श्रम से हो निढाल जब सकल श्रृष्टि हुई जग की व्यथित
मुदित शीतल रश्मि लिए हुए गगन में हिम चन्द्र उदित हुआ
तपन से तपता तन लोकहित हित तरलता तिर तिर घिर चन्द्र की
बरसती घन से बन बन घनी सघन सांद्र फुहार अमृतमयी
मन मिलिंद मुखर अति मन्द ही गगन शीतल चाॅद निरख निरख
नयन नंदित नाॅच निमिष निमिष निशि निशापति देख विकल हुए
पवन पूत वही हृदतरू झरे विषय पीत पुरातन पत्र सब
नवनवांकुर अंकुर अंकुरित हृदयभूमि बनान्त वसन्त सी
ज्वलित दीप प्रकाशित द्वीपसब चमकती हर ज्योति प्रदीप्त हो
गहन अन्ध तमिस्र भरा गगन तम भरे जग का उर चीरती
जल चिराग गये लौ वर्तिका लख पतंग अनन्द विभोर हो
हृदय का अनुराग उमाह ले लघु पतंग सभी लौ जल गये
निबिड नीड निशा खग वृन्द के स्वपित शावक सौख्य भरे अयन
परम आनन्द मग्न लगे महल लटकते टहनी पर घोंसले
विहॅसते नवशावक केलिकर मन अनन्दित मातु रिझा रहे
जगत सुख परमानन्द प्राप्त कर प्रभु कृपा उर मान प्रशन्न हैं
पग बढा गिर गिर उठना पुना संभल बोल सुना कुछ तोतले
मचल कर भरते किलकारियाँ थक गयीं बोझिल पलकें खुली
रूदन ठान मचल ऑचल पकड़लद कमर पलकें ढलने लगीं
कर लिये हिल झूलन झोंक मेंनयन बन्द किये और सो गये
सुघर गोष्ठ मनोरम रज्जु से मुॅह बॅधा जिनका अवरोध हित
शिरसि राजति रंजन रंगपट शिर हिला बजतीं गल घंटियाँ
अमृत दुग्ध उतर वस ऐन में सब रंभाकर धेनु बुला रहीं
खुल गये सब बन्धन वत्स के उछलकर पयपान करें मचल
सुमन सुन्दर मन्द सुगन्ध से
,पवन पूत सुवासित कर धरा
प्रसरती जग दूषण उष्णता
प्रखर ताप मिला सब हर रहीं