साहित्य मन्दाकिनी। पभात वर्णन
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निशिगते मुदिता अतिशोभिता प्रमुदिता बन कानन वल्लरी
लसित पुष्प अनेक मनोहरा नवधरा नवरूप सहेजती
सरसि सरसिज श्वेत कुमोदिनी मुदित मन्थर गन्ध सुगन्ध ले
दिग दिगन्त सुवास प्रसारती नव प्रभात सुवासित थी धरा
सरसजे सरसिज मनसिज लजे विविध रंग मनोरम है छटा
नयन कोर वसी सुषमा सुघर हर डगर हर हर घर है सजा
विहॅसती कर नाद नदी वहे मुखर मूक हृदय छल छल ध्वनी
स्व गृह त्याग चली प्रिय गह जभी अमल नीर उछल कुछ तो कहे
वरण लोहित ताम्रमयी प्रभा विटप कानन के कमनीय थे
सरसतीं मनमोहक वीथियाॅ तरूलता बनभूमि प्रभामयी
नदित नन्दन नादमयी ध्वनी गिरिशिखर मद को करती शमन
धवल धाम धरार्णव प्रेयसी अति प्रशान्त निरन्तर वह रही
भ्रमर गुंजन से कर गुंजरित अविकिसिता नवयौवन सी लसित
विकलता द्विगुणीकृत नवकली स्फुटित हो बनबीच सरस रही
धरणि भास्कर की नव रश्मियां अरूणिमा तरूणोदित हो गयीं
नव प्रभात लिये नव चेतना जगत चेतन श्रृष्टि समस्त थी
तल तलातल को करती विमल वह रही अति मन्द समीर थी
दिग दिगन्त प्रभात प्रबात ले मधुर गन्ध सुगन्ध विखेरता
रजत शुभ्र धवल नदनीर में स्वर्ण कान्ति सदृश लख रश्मियां
नव उमंग हृदय नव चेतना कर ग्रहण जड़ता त्यज मुक्त थी
विटप से नववेलि लिपट लगी हरित पत्र सुसज्जित प्रियतमा
नवनवांकुर पुष्पित पल्लवित भुजलता लिपटी जनु नववधू
विटप पर लसते शुक काक पिक लचकती लतिका लसती ललित
किरण भोर सुहावन पावनी मधुर कलरव से कर गुंजरित
लग रहा जनु पक्षि समूह भीभुवन भास्कर की कर आरती
परम ईश महा जगदीश को कर नमन विरूदावलि वाॅचते
प्रखर पुंज प्रकाश प्रसारती गहनता तम की कुछ न्यून कर
निशि निविड नीड शयन किये उड चले शुक शावक स्नेह से
सुघर घाट बना तट पर वसे रम रहे रमणीय रमा रमन
प्रसरता तप तेज गगन निरख सकल साधक वाहक ज्ञान के
नद नदी सर गंग उमंग सेतन मलिन धो धो करते हवन
भजन अर्चन पूजन हो मगन नंदन नन्दन का करते मनन